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एस धम्मो सनंतनो
थे? इतने कृपण क्यों थे? मैंने तुम्हें इतना दिया था, तुमने उसे बांटा होता। तुमने उसे बहाया होता। तुम एक बंद सरोवर की तरह क्यों रहे? तुम बहती हुई सरिता क्यों न बने? तुम कृपण वृक्ष की तरह रहे कि जिसने फूलों को न खिलने दिया कि कहीं सुगंध बंट न जाए! तुम एक खदान की तरह रहे जो अपने हीरों को दबाए रही, कहीं सूरज की रोशनी न लग जाए! ___ परमात्मा ने तुम्हारे सामने जीवन की प्याली भरकर रख दी है। और एक बात समझ लेना कि तुम जितना इस प्याली पर दूसरों को निमंत्रित करोगे, उतनी यह प्याली भरती चली जाएगी। तुम इसे खाली ही न करोगे, तो यह बोझ भी हो जाएगी,
और परमात्मा भरे कैसे इसे? और कैसे भरे ? यह भरी हुई रखी है। तुम इसे उलीचो, खाली करो। तुम पर बोझ भी न होगी और परमात्मा को और भरने का मौका दो। जिसने एक आनंक की घड़ी का उपयोग कर लिया उसके जीवन में दस आनंद की घड़ियां उपलब्ध हो जाती हैं। जो एक बार नाचा, दस बार नाचने की क्षमता उसे उपलब्ध हो जाती है।
लेकिन यह बड़ी कठिन बात है। तुम कहते जरूर हो आनंद चाहते हैं, लेकिन तुम्हें आनंद के स्वभाव का कुछ पता नहीं। तुम्हें आनंद भी मिल जाए तो तुम उससे भी दुख पाओगे। तुम ऐसे अभ्यासी हो गए हो दुख के। दुख का स्वभाव है सिकुड़ना, आनंद का स्वभाव है फैलना। इसलिए जब कोई दुख में होता है तो एकांत चाहता है। बंद कमरा करके पड़ा रहता है अपने बिस्तर पर सिर को ढांककर। न किसी से मिलना चाहता है, न किसी से जुलना चाहता है। चाहता है मर ही जाऊं। कभी-कभी आत्महत्या भी कर लेता है कोई। सिर्फ इसीलिए कि अब क्या मिलने को रहा?
लेकिन जब तुम आनंदित होते हो, तब तुम मित्रों को बुलाना चाहते हो। मित्रों से मिलना चाहते हो। तुम चाहते हो किसी से बांटो, किसी को तुम्हारा गीत सुनाओ, कोई तुम्हारे फूल की गंध से आनंदित हो। तुम किसी को भोज पर आमंत्रित करते हो। तुम मेहमानों को बुला आते हो, आमंत्रण दे आते हो।
मेरे एक प्रोफेसर थे। उनका मुझसे बड़ा लगाव था। लेकिन वे मुझे घर बुलाने में डरते थे, क्योंकि शराब पीने की उन्हें आदत थी। और कहीं ऐसा न हो कि मुझे पता चल जाए। कहीं ऐसा न हो कि मेरे मन में उनकी जो प्रतिष्ठा है, वह गिर जाए। वे इससे बड़े भयभीत थे, बड़े डरे हुए थे। बहुत भले आदमी थे।
पर एक बार ऐसा हुआ कि मैं बीमार पड़ा और उन्हें मुझे हास्टल से घर ले जाना पड़ा। तो कोई दो महीने मैं उनके घर पर था। बड़ी मुश्किल हो गई। वे पीएं कैसे? पांच-दस दिन के बाद तो भारी होने लगा मामला। मैंने उनसे पूछा कि आप कुछ परेशान हैं, मुझे कह ही दें-अगर आप ज्यादा परेशान हैं, या कोई अड़चन है मेरे होने से यहां, तो मैं चला जाऊं वापस। उन्होंने कहा कि नहीं। पर मैं अपनी परेशानी
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