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________________ एस धम्मो सनंतनो कठिनाई इसलिए खड़ी होती है कि हमने जीवन में केवल मांगने की कला सीखी है। और जब हम सम्राट बनते हैं, तो अड़चन आ जाती है। मांगने की कला का अभ्यास, फिर अचानक जब हम सम्राट बन जाते हैं परमात्मा के प्रसाद से, उतरती है अपरिसीम ऊर्जा, तब भी हम मांगना ही जानते हैं, देना नहीं जानते। हमारे जीने का सारा ढंग मांगना सिखाता है। फिर जब परमात्मा हम पर बरसता है तो बांटने की हमारे पास कोई कला नहीं होती, आदत नहीं होती, अभ्यास नहीं होता, इसलिए अड़चन आती है। यही तो कठिनाई है। _____ मेरे पास बहुत अमीर लोग आ जाते हैं। वे कहते हैं, बड़ी अड़चन है; धन तो है, क्या करें? अड़चन क्या है? अड़चन यही है कि आदत गरीबी की है, आदत भिखारी की है। अड़चन यही है। जिंदगीभर मांगा-कमाना सीखा। बांटना तो कभी सीखा नहीं! सीखते भी कैसे? था ही नहीं तो बांटते क्या? जो नहीं था उसको मांगा, इकट्ठा किया, जोड़ा, संजोया, सारा जीवन इकट्ठा करने की आदत बन गई। फिर मिला; अब देने को हाथ नहीं खुलते, बढ़ते नहीं, यही अड़चन है। यह अड़चन समझ ली तो हल हो गई। कुछ करना थोड़े ही है। __ शक्ति मिल गई, आविर्भाव हुआ, यही तो सारे ध्यान की चेष्टा है। और तुम पूछते हो कि 'आप श्रद्धा, प्रेम, आनंद की बात करते हैं, शक्ति के बारे में क्यों नहीं समझाते?' वही तो मैं शक्ति के बारे में समझा रहा हूं कि जब शक्ति उठे, तो आनंद बनाना। नहीं तो मुश्किल खड़ी होगी। जब शक्ति उठे तो नाचना। फिर साधारण चलने से काम न बनेगा, दौड़ना। फिर ऐसे ही उठना-बैठना काफी न होगा। अपूर्व नृत्य जब तक जीवन में न होगा तब तक बोझ मालूम होगा। जितनी बड़ी शक्ति, उतनी बड़ी जिम्मेवारी उतरती है। जितना ज्यादा तुम्हारे पास है, अगर तुम उसे फैला न सके तो बोझ हो जाएगा। __ शक्ति की समस्या नहीं है, फैलाना सीखो। इसलिए तो प्रेम की बात करता हूं, शक्ति की बात नहीं करता। जिनके पास शक्ति नहीं है, उन्हें शक्ति के संबंध में क्या समझाना? जिनके पास है, उन्हें शक्ति के संबंध में क्या समझाना? जिनके पास नहीं है, उन्हें शक्ति कैसे पैदा की जाए-कैसे ध्यान, साधना, तपश्चर्या, अभ्यास, योग, तंत्र-कैसे शक्ति पैदा की जाए, यह समझाना जरूरी है। फिर जिनके पास शक्ति आ जाए, द्वार खुल जाए परमात्मा का और बरसने लगे उसकी ऊर्जा, उन्हें शक्ति के संबंध में क्या समझाना? जब शक्ति सामने ही खड़ी है तो अब उसके संबंध में क्या बात करनी? उन्हें समझाना है प्रेम, आनंद, उत्सव। इसलिए प्रत्येक ध्यान पर मेरा जोर रहा है कि तुम उसे उत्सव में पूरा करना। कहीं ऐसा न हो कि ध्यान करने का तो अभ्यास हो जाए, और बांटने का अभ्यास न हो। ___बहुत लोग दीनता से मरे हैं, बहुत लोग साम्राज्य से मर गए हैं। बहुत से लोग 78
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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