________________
अंतर्बाती को उकसाना ही ध्यान
वह जो-जो हाथ में आ जाए उसको तो बचाना। जितना थोड़ा सा चित्त साफ हो जाए, ऐसा मत सोचना कि अब क्या करना है सफाई। वह फिर गंदा हो जाएगा। जब तक कि परिपूर्ण अवस्था न आ जाए समाधि की तब तक श्रम जारी रखना होगा। ___हां, समाधि फलित हो जाए, फिर कोई श्रम का सवाल नहीं। समाधि उपलब्ध हो जाए, फिर तो तुम उस जगह पहुंच गए जहां कोई चीज तुम्हें कलुषित नहीं कर सकती। मंजिल पर पहुंच गए। फिर तो साइकिल को चलाना ही नहीं, उतर ही जाना है। फिर तो जो पैडल मारे वह नासमझ। क्योंकि वह फिर मंजिल के इधर-उधर हो जाएगा। एक ऐसी घड़ी आती है, जहां उतर जाना है, जहां रुक जाना है, जहां यात्रा ठहर जाएगी। लेकिन उस घड़ी के पहले तो श्रम जारी रखना। और जो भी छोटी-मोटी विजय मिल जाए, उसको सम्हालना है। संपदा को बचाना है।
'प्रज्ञारूपी हथियार से मार से युद्ध कर।'
वही एक हथियार है आदमी के पास होश का, प्रज्ञा का। उसी के साथ वासना से लड़ा जा सकता है। और कोई हथियार काम न आएगा। जबर्दस्ती से लड़ोगे, हारोगे। दबाओगे, टूटोगे। वासना को किसी तरह छिपाओगे, छिपेगी नहीं। आज नहीं कल फूट पड़ेगी। विस्फोट होगा, पागल हो जाओगे। विक्षिप्त हो जाओगे, विमुक्त नहीं। एक ही उपाय है, जिससे भी लड़ना हो होश से लड़ना। होश को ही एकमात्र अस्त्र बना लेना। अगर क्रोध है, तो क्रोध को दबाना मत क्रोध को देखना, क्रोध के प्रति जागना। अगर काम है, तो काम पर ध्यान करना। होश से भरकर देखना, क्या है काम की वृत्ति। ___ और तुम चकित होओगे, इन सारी वृत्तियों का अस्तित्व निद्रा में है, प्रमाद में है। जैसे दीया जलने पर अंधेरा खो जाता है, ऐसे ही होश के आने पर ये वृत्तियां खो जाती हैं। मार, शैतान, काम-कुछ भी नाम दो-तुम्हारी मूर्छा का ही नाम है। ___ 'अहो! यह तुच्छ शरीर शीघ्र ही चेतना-रहित होकर व्यर्थ काठ की भांति पृथ्वी पर पड़ा रहेगा।' . बुद्ध कहते हैं, जब तुम जागकर देखोगे, परम आनंद का अनुभव होगा। भीतर एक उदघोष होगा___ 'अहो! यह तुच्छ शरीर शीघ्र ही चेतना-रहित होकर व्यर्थ काठ की भांति पृथ्वी पर पड़ा रहेगा। __ यह शरीर तुम नहीं। और जिस दिन तुम अपने शरीर को व्यर्थ काठ की भांति पड़ा हुआ देख लोगे, उसी दिन तुम शरीर के पार हो गए। अतिक्रमण हुआ। शरीर मौत है। शरीर रोग है। शरीर उपाधि है। जो शरीर से मुक्त हुआ, वह निरुपाधिक हो गया।
शरीर से मुक्त होने का क्या अर्थ है? शरीर से मुक्त होने का अर्थ है, इस बात की प्रतीति गहन हो जाए, सघन हो जाए; यह लकीर फिर मिटाए न मिटे, यह बोध