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एस धम्मो सनंतनो हाथ में चाबी लेकर ताले में डालता है, नहीं जाती, हाथ कंप रहा है। पुलिस का आदमी द्वार पर खड़ा है। वह बड़ी देर तक देखता रहा, फिर उसने कहा कि नसरुद्दीन, मैं कुछ सहायता करूं? लाओ चाबी मुझे दो, मैं खोल दूं। नसरुद्दीन ने कहा, चाबी की तुम फिकर न करो, जरा इस कंपते मकान को तुम पकड़ लो, चाबी तो मैं खुद ही डाल दूंगा।
जब आदमी के भीतर शराब में सब कंप रहा हो, तो उसे ऐसा नहीं लगता कि मैं कंप रहा हूं; उसे लगता है यह मकान कंप रहा है। तुमने कभी शराब पी? भांग पीकर कभी चले रास्ते पर? जरूर चलकर देखना चाहिए, एक दफा अनुभव करने जैसा है। उससे तुम्हें पूरे जीवन के अनुभव का पता चल जाएगा कि ऐसा ही संसार है। इसमें तुम नशे में चल रहे हो। तुम कंप रहे हो, कुछ भी नहीं कंप रहा है। तुम खंड-खंड हो गएं हो, बाहर तो जो है वह अखंड है। तुम अनेक टुकड़ों में बंट गए हो, बाहर तो एक है। दर्पण टूट गया है तो बहुत चित्र दिखाई पड़ रहे हैं, जो है वह एक है। बुद्ध कहते हैं, चित्त ठहर जाए, अकंप हो जाए, जैसे दीए की लौ ठहर जाए, कोई हवा कंपाए न। ____ 'प्रज्ञारूपी हथियार से मार से युद्ध कर, जीत के लाभ की रक्षा कर, पर उसमें आसक्त न हो।'
यह बड़ी कठिन बात है। कठिनतम, साधक के लिए। क्योंकि इसमें विरोधाभास है। बुद्ध कहते हैं, आकांक्षा कर, लेकिन आसक्त मत हो। सत्य की आकांक्षा करनी होगी। और सत्य को जीतने की भी यात्रा करनी होगी। विजय को सुरक्षित करना होगा, नहीं तो खो जाएगी हाथ से विजय। ऐसे बैठे-ठाले नहीं मिल जाती है। बड़ा उद्यम, बड़ा उद्योग, बड़ा श्रम, बड़ी साधना, बड़ी तपश्चर्या।। 'जीत के लाभ की रक्षा कर।'
और जो छोटी-मोटी जीत मिले उसको बचाना, रक्षा करना, भूल मत जाना, नहीं तो जो कमाया है वह भी खो जाता है।
तो ध्यान सतत करना होगा, जब तक समाधि उपलब्ध न हो जाए। अगर एक दिन की भी गाफिलता की, एक दिन की भी भूल-चूक की, तो जो कमाया था वह खोने लगता है। ध्यान तो ऐसा ही है जैसे कि कोई साइकिल पर सवार आदमी पैडल मारता है। वह सोचे कि अब तो चल पड़ी है साइकिल, अब क्या पैडल मारना! पैडल मारना बंद कर दे तो ज्यादा देर साइकिल न चलेगी। चढ़ाव होगा तब तो फौरन ही गिर जाएगी। उतार होगा तो शायद थोड़ी दूर चली जाए, लेकिन कितनी दूर जाएगी? ज्यादा दूर नहीं जा सकती। सतत पैडल मारने होंगे, जब तक कि मंजिल ही न आ जाए।
ध्यान रोज करना होगा। जो-जो कमाया है ध्यान से, उसकी रक्षा करनी होगी। 'जीत के लाभ की रक्षा कर।'
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