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________________ एस धम्मो सनंतनो फिर दबाए न दबे; यह बोध सतत हो जाए; जागने में, सोने में यह अनुभव होता रहे कि तुम शरीर में हो, शरीर ही नहीं। ___ 'जितनी हानि द्वेषी द्वेषी की या वैरी वैरी की करता है, उससे अधिक बुराई गलत मार्ग पर लगा हुआ चित्त करता है।' दुश्मन से मत डरो, बुद्ध कहते हैं, वह तुम्हारा क्या बिगाड़ेगा? डरो अपने चित्त से। शत्रु शत्रु की इतनी हानि नहीं करता-नहीं कर सकता–जितना तुम्हारा चित्त गलत दिशा में जाता हुआ तुम्हारी हानि करता है। बुद्ध ने कहा है, तुम्हारा ठीक दिशा में जाता चित्त ही मित्र है। और तुम्हारा गलत दिशा में जाता चित्त ही शत्रु है। तुम अपने ही चित्त से सावधान हो जाओ। तुम अपने ही चित्त का सदुपयोग कर लो, सम्यक उपयोग कर लो, फिर तुम्हारी कोई हानि नहीं करता। अगर कोई दूसरा भी तुम्हारी हानि कर पाता है, तो सिर्फ इसीलिए कि तुम्हारा चित्त गलत दिशा में जा रहा था, नहीं तो कोई तुम्हारी हानि नहीं कर सकता। ठीक दिशा में जाते चित्त की हानि असंभव है। इसलिए असली सवाल उसी भीतर के दृढ़ दुर्ग को उपलब्ध कर लेना है। ___ 'जितनी हानि द्वेषी द्वेषी की या वैरी वैरी की करता है, उससे अधिक बुराई गलत मार्ग पर लगा हुआ चित्त करता है।' क्या है गलत मार्ग? स्वयं को न देखकर शेष सब दिशाओं में भटकते रहना। भीतर न खोजकर, और सब जगह खोजना। अपने में न झांककर सब जगह झांकना। अपने घर न आना, और हर घर के सामने भीख मांगना गलत मार्ग है। और ऐसे तुम चलते ही रहे हो! चलता हूं थोड़ी दूर हर एक राहरौ के साथ पहचानता नहीं हूं अभी राहबर को मैं यह चित्त तुम्हारा हरेक के साथ हो जाता है। कोई भी यात्री मिल जाता है, उसी के साथ हो जाता है। कोई स्त्री मिल गई, कोई पुरुष मिल गया, कोई पद मिल गया, कोई धन मिल गया, कोई यश मिल गया, चल पड़ा। थोड़ी दूर चलता है, फिर हाथ खाली पाकर फिर किसी दूसरे के साथ चलने लगता है। राह पर चलते अजनबियों के साथ हो लेता है। अभी अपने मार्गदर्शक को पहचानता नहीं है। चलता हूं थोड़ी दूर हर एक राहरौ के साथ जो मिल गया उसी के साथ हो लेता है। अपना कोई होश नहीं। पहचानता नहीं हूं अभी राहबर को मैं अभी कौन मार्गदर्शक है, कौन गुरु है, उसे मैं पहचानता नहीं। बुद्ध ने कहा है, तुम्हारा होश ही तुम्हारा गुरु है। कभी आंख लुभा लेती है, रूप की तरफ चल पड़ता है। कभी कान लुभा लेता है, संगीत की तरफ चल पड़ता है। कभी जीभ लुभा लेती है, स्वाद की तरफ चल पड़ता है। 70
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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