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एस धम्मो सनंतनो
लोग जब दुख में होते हैं तभी मंदिर की तरफ जाते हैं। और जो सुख में जाता है, वही समझ पाता है। दुख में जाकर तुम समझ न पाओगे। क्योंकि दुख छाया है, मूल नहीं। मूल तो जा चुका, छाया गुजर रही है। छाया को कैसे रोका जा सकता है ? ___ मैंने उस महिला को कहा, तू रो ही ले, अब दुख को भी भोग ही ले। क्योंकि भ्रांति दुख की नहीं है, भ्रांति सुख की है। सुख मिल सकता है, तो फिर दुख भी मिलेगा। वसंत से मोह लगाया, तो पतझड़ में रोओगे। जवानी में खुश हुए, बुढ़ापे में रोओगे। पद में प्रसन्न हुए, तो फिर पद खोकर कोई दूसरा रोएगा तुम्हारे लिए? मुस्कुराए तुम, तो आंसू भी तुम्हें ही ढालने पड़ेंगे। और दोनों एक जैसे हैं ऐसा जिसने जान लिया, क्योंकि दोनों का स्वभाव क्षणभंगुर है, पानी के बबूले जैसे हैं...। __ ध्यान रखना, यह जानना सुख में होना चाहिए, दुख में नहीं। दुख में तो बहुत पुकारते हैं परमात्मा को, और फिर सोचते हैं, शायद उस तक आवाज नहीं पहुंचती। दुख में पुकारने की बात ही गलत है। जब तुमने सुख में न पुकारा, तो तुम गलत मौके पर पुकार रहे हो। जब तुम्हारे पास कंठ था और तुम पुकार सकते थे, तब न पुकारा; अब जब कंठ अवरुद्ध हो गया है तब पुकार रहे हो! अब पुकार निकलती ही नहीं। ऐसा नहीं है कि परमात्मा नहीं सुनता है। दुख में पुकार निकलती ही नहीं। दुख तो अनिवार्य हो गया। ___अगर सुख में न जागे, और सुख को गुजर जाने दिया, तो अब छाया को भी गुजर जाने दो। मेरे देखे, जो सुख में जागता है वही जागता है। जो दुख में जागने की कोशिश करता है वह तो साधारण कोशिश है, सभी करते हैं। हर आदमी दुख से मुक्त होना चाहता है। ऐसा आदमी तुम पा सकते हो जो दुख से मुक्त नहीं होना चाहता? लेकिन इसमें सफलता नहीं मिलती, नहीं तो सभी लोग मुक्त हो गए होते। लेकिन जो सुख से मुक्त होना चाहता है, वह तत्क्षण मुक्त हो जाता है। लेकिन सुख से कोई मुक्त नहीं होना चाहता। यही आदमी की विडंबना है।
दुख से तुम मुक्त होना चाहते हो, लेकिन वहां से मार्ग नहीं। सुख से तुम मुक्त होना नहीं चाहते, वहां से मार्ग है। दीवाल से तुम निकलना चाहते हो, द्वार से तुम निकलना नहीं चाहते। जब दीवाल सामने आ जाती है, तब तुम सिर पीटने लगते हो कि मुझे बाहर निकलने दो। जब द्वार सामने आता है, तब तुम कहते हो अभी जल्दी क्या है? आने दो दीवाल को, फिर निकलेंगे। __ ध्यान रखना, जो सुख में संन्यासी हुआ, वही हुआ। तेन त्यक्तेन भुंजीथाः। उन्होंने ही छोड़ा जिन्होंने भोग में छोड़ा। पत्नी मर गई, इसलिए तुम संन्यासी हो गए। दिवाला निकल गया, इसलिए संन्यासी हो गए। नौकरी न लगी, इसलिए संन्यासी हो गए। चुनाव हार गए, इसलिए संन्यासी हो गए। तो तुम्हारा संन्यास हारे हुए का संन्यास है। इस संन्यास में कोई प्राण नहीं। लोग कहते हैं, 'हारे को हरिनाम।' हारे को हरिनाम? हारे हुए को तो कोई हरि का नाम नहीं हो सकता।
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