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________________ अंतर्बाती को उकसाना ही ध्यान जीत में स्मरण रखना बड़ा मुश्किल है। क्योंकि जीत बड़ी बेहोशी लाती है। जीत में तो तुम ऐसे अकड़ जाते हो कि अगर परमात्मा खुद भी आए, तो तुम कहो फिर कभी आना, आगे बढ़ो, अभी फुर्सत नहीं। और मैं तुमसे कहता हूं परमात्मा आया है, क्योंकि जीत में द्वार सामने होता है। लेकिन तुम अंधे होते हो। "जिसके चित्त में राग नहीं और इसलिए जिसके चित्त में द्वेष नहीं, जो पाप-पुण्य से मुक्त है, उस जाग्रत पुरुष को भय नहीं।' . भय क्यों पैदा होता है? भय दो कारण से पैदा होता है। जो तुम चाहते हो, कहीं ऐसा न हो कि न मिले, तो भय पैदा होता है। या, जो तुम्हारे पास है, कहीं ऐसा न हो कि खो जाए, तो भय पैदा होता है। लेकिन जाग्रत पुरुष को पता चलता है कि तुम्हारे पास केवल तुम ही हो, और कुछ भी नहीं। और जो तुम हो, उसको खोने का कोई उपाय नहीं। उसे न चोर ले जा सकते हैं, न डाकू छीन सकते हैं। नैनं छिंदंति शस्त्राणि-उसे शस्त्र छेद नहीं पाते। नैनं दहति पावकः-उसे आग जलाती नहीं। जाग्रत को पता चलता है कि जो मैं हूं वह तो शाश्वत, सनातन है। उसकी कोई मृत्यु नहीं। सोया कंपता है। डरता है कि कहीं कोई मुझसे छीन न ले। दो दिन पहले एक युवती ने मुझे आकर कहा कि मैं सदा डरती रहती हूं कि जो मेरे पास है, कहीं छिन न जाए। मैंने उससे पूछा कि तू पहले मुझे यह बता, क्या तेरे पास है ? उसने कहा, जब आप पूछते हो तो बड़ी मुश्किल होती है, है तो कुछ भी नहीं। फिर डर किस बात का है? क्या है तुम्हारे पास जो खो जाएगा? धन? और जो तुम सोचते हो तुम्हारे पास है और खो सकता है, क्या तुम उसे बचा सकोगे? तुम कल पड़े रह जाओगे। सांस नहीं आएगी-जाएगी, मक्खियां उड़ेंगी तुम्हारे चेहरे पर-तुम उड़ा भी न सकोगे-धन यहीं का यहीं पड़ा रह जाएगा। धन तुम्हारा है? तुम नहीं थे तब भी यहां था, तुम नहीं होओगे तब भी यहां होगा। और ध्यान रखना, धन रोएगा नहीं कि तुम खो गए। मालिक खो गया और धन रोए। धन को पता ही नहीं कि तुम भी मालिक थे। तमने ही मान रखा था। ___तुम्हारी मान्यता ऐसी ही है जैसे मैंने सुना है, एक हाथी एक छोटे से नदी के पुल पर से गुजरता था और एक मक्खी उस हाथी के सिर पर बैठी थी। जब पुल कंपने लगा, और उस मक्खी ने कहा, देखो! हमारे वजन से पुल कंपा जा रहा है। हमारे वजन से! उसने हाथी से कहा, बेटे! हमारे वजन से पुल कंप रहा है। हाथी ने कहा कि मुझे अब तक पता ही न था कि तू भी ऊपर बैठी है। कहते हैं छिपकलियां, उनको कभी निमंत्रण मिल जाता है उनकी जात-बिरादरी में तो जाती नहीं, वे कहती हैं महल गिर जाएगा, सम्हाले हुए हैं। छिपकली चली जाएगी तो महल गिर जाएगा! तुम्हारी भ्रांति है कि तुम्हारे पास कुछ है। तुम्हारी मालकियत झूठी है। हां, जो
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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