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अंतर्बाती को उकसाना ही ध्यान इसलिए बुद्ध ने इस सूत्र में बड़ी महिमापूर्ण बात कही है। कहा है कि जिसके चित्त में न राग रहा, न द्वेष; जो पाप-पुण्य से मुक्त है। क्योंकि जब यही समझ में
आ गया कि कोई मुझे सुख नहीं दे सकता, तो यह भ्रांति अब कौन पालेगा कि मैं किसी को सुख दे सकता हूं? तो कैसा पुण्य ? फिर यह भ्रांति भी कौन पालेगा कि मैंने किसी को पाप किया, किसी को दुख दिया। यह भ्रांति भी गई। सुख-दुख के जाते ही, राग-द्वेष के जाते ही पाप-पुण्य भी चला जाता है। पाप-पुण्य सुख और दुख के ही सूक्ष्म रूप हैं। __ इसलिए तो धर्मगुरु तुमसे कहते हैं कि जो पुण्य करेगा वह स्वर्ग जाएगा। स्वर्ग यानी सुख। तुमने चाहे इसे कभी ठीक-ठीक न देखा हो। और धर्मगुरु कहते हैं, जो पाप करेगा वह नर्क जाएगा। नर्क यानी दुख। अगर पुण्य का परिणाम स्वर्ग है और पाप का परिणाम नर्क है, तो एक बात साफ है कि पाप-पुण्य सुख-दुख से ही जुड़े हैं। जब सुख-दुख ही खो गया, तो पाप-पुण्य भी खो जाते हैं।
ध्यान रखना, दुनिया में दो तरह के भयभीत लोग हैं। जिनको तुम अधार्मिक कहते हो, वे डरे हैं कि कहीं दूसरा दुख न दे दे। और जिनको तुम धार्मिक कहते हो, वे डरे हैं कि कहीं मुझसे किसी दूसरे को दुख न हो जाए। जिनको तुम अधार्मिक कहते हो, वे डरे हैं कि कहीं ऐसा न हो कि मैं दूसरे से सुख लेने में चूक जाऊं। और जिनको तुम धार्मिक कहते हो, वे डरे हैं कि कहीं ऐसा न हो कि मैं दूसरे को सुख देने से चूक जाऊं। तो तुम्हारे धार्मिक और अधार्मिक भिन्न नहीं हैं। एक-दूसरे की तरफ पीठ किए खड़े होंगे, लेकिन एक ही तल पर खड़े हैं। तल का कोई भेद नहीं है। कोई तुम्हारा धार्मिक अधार्मिक से ऊंचे तल पर नहीं है, किसी और दूसरी दुनिया में नहीं है।
हो दौरे-गम कि अहदे-खशी दोनों एक हैं __दोनों गुजश्तनी हैं खिजां क्या बहार क्या
चाहे पतझड़ हो, चाहे वसंत, दोनों ही क्षणभंगुर हैं। दोनों अभी हैं, अभी नहीं • हो जाएंगे। दोनों पानी के बुलबुले हैं। दोनों ही क्षणभंगुर हैं। दोनों में कुछ चुनने जैसा
नहीं है। क्योंकि अगर तुमने बहार को चुना, तो ध्यान रखना, अगर तुमने वसंत को चुना तो पतझड़ को भी चुन लिया। फिर वसंत में अगर सुख माना, तो पतझड़ में दुख कौन मानेगा?
एक महिला मेरे पास लाई गई। रोती थी, छाती पीटती थी, पति उसके चल बसे। वह कहने लगी, मुझे किसी तरह सांत्वना दें, समझाएं। किसी तरह मुझे मेरे दुख के बाहर निकालें। मैंने उससे कहा, सुख तूने लिया। माना कि सुख था, अब दुख कौन भोगेगा? तू बहुत होशियारी की बात कर रही है। पति के होने का सुख, तू कभी मेरे पास नहीं आई कि मुझे इस सुख से बचाएं। जगाएं, ये मैं सुख में डूबी जा रही हूं। तू कभी आई ही नहीं इस रास्ते पर।