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अंतर्बाती को उकसाना ही ध्यान
जितने कायर। कायर डरकर बैठ जाता है, बहादुर डरकर बैठता नहीं, चलता चला जाता है। कायर अपने भय को मान लेता है, बहादुर अपने भय को इनकार किए जाता है, लेकिन भयभीत तो है ही। अभय की अवस्था बड़ी भिन्न है। न वहां भय है, न वहां निर्भयता है। जब भय ही न रहा, तो निर्भय कोई कैसे होगा? अभय का अर्थ है, भय और निर्भय दोनों ही जहां खो जाते हैं। जहां वह बात ही नहीं रह जाती।
इस अवस्था को बुद्ध और महावीर दोनों ने भगवत्ता की तरफ पहला कदम कहा है। कौन आदमी अभय को उपलब्ध होगा? कौन से चित्त में अभय आता है? जिस चित्त में राग नहीं, उस चित्त में द्वेष भी नहीं होता। स्वभावतः। क्योंकि राग से ही द्वेष पैदा होता है।
तुमने खयाल किया, किसी को तुम सीधा-सीधा शत्रु नहीं बना सकते। पहले मित्र बनाना पड़ता है। एकदम से किसी को शत्रु बनाओगे भी तो कैसे बनाओगे? शत्रु सीधा नहीं होता, सीधा पैदा नहीं होता, मित्र के पीछे आता है। द्वेष सीधे पैदा नहीं होता, राग के पीछे आता है। घृणा सीधे पैदा नहीं होती, जिसे तुम प्रेम कहते हो उसी के पीछे आती है। तो शत्रु किसी को बनाना हो तो पहले मित्र बनाना पड़ता है।
और द्वेष किसी से करना हो तो पहले राग करना पड़ता है। किसी को दूर हटाना हो तो पहले पास लेना पड़ता है। ऐसी अनूठी दुनिया है। ऐसी उलटी दुनिया है।
द्वेष से तो तुम बचना भी चाहते हो। लेकिन जिसने राग किया, वह द्वेष से न बच सकेगा। जब तुमने व्यक्ति को स्वीकार कर लिया, तो उसकी छाया कहां जाएगी? वह भी तुम्हारे घर आएगी। तुम यह न कह सकोगे मेहमान से कि छाया बाहर ही छोड़ दो, हमने केवल तुम्हें ही बुलाया है। छाया तो साथ ही रहेगी। द्वेष राग की छाया है। वैराग्य राग की छाया है।
इसलिए तो मैं तुमसे कहता हूं, असली वैरागी वैरागी नहीं होता। असली वैरागी तो राग से मुक्त हो गया। इसलिए महावीर-बुद्ध ने उसे नया ही नाम दिया है, उसे वीतराग कहा है। तीन शब्द हुए–राग, वैराग्य, वीतरागता। राग का अर्थ है संबंध किसी से है, और ऐसी आशा कि संबंध से सुख मिलेगा। राग सुख का सपना है। किसी दूसरे से सुख मिलेगा, इसकी आकांक्षा है। द्वेष, किसी दूसरे से दुख मिल रहा है इसका अनुभव है। मित्रता, किसी को अपना मानने की आकांक्षा है। शत्रता, कोई अपना सिद्ध न हुआ, पराया सिद्ध हुआ, इसका बोध है। मित्रता एक स्वप्न है। शत्रुता स्वप्न का टूट जाना। राग अंधेरे में टटोलना है, द्वार की आकांक्षा में। लेकिन जब द्वार नहीं मिलता और दीवाल मिलती है, तो द्वेष पैदा हो जाता है। द्वार अंधेरे में है ही नहीं, टटोलने से न मिलेगा। द्वार टटोलने में नहीं है। द्वार जागने में है।
तो बुद्ध कहते हैं, जिसके चित्त में राग नहीं है। राग का अर्थ है, जिसने यह खयाल छोड़ दिया कि दूसरे से सुख मिलेगा। जो जाग गया, और जिसने समझा कि सुख किसी से भी नहीं मिल सकता। एक ही भ्रांति है, कहो इसे संसार, कि दूसरे से