SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एस धम्मो सनंतनो को देखकर अगर ऊपर-ऊपर से आ गए तो धोखा हो जाएगा। बगुले को देखा है खड़ा? कैसा बुद्ध जैसा खड़ा रहता है। इसीलिए तो बगुला भगत शब्द हो गया। कैसा भगत मालूम पड़ता है! एक टांग पर खड़ा रहता है। कौन योगी इतनी देर इस तरह खड़ा रहता है? लेकिन नजर मछली पर टिकी रहती है। तो तुम्हें ऐसे लोग मिल जाएंगे-काफी है उनकी संख्या-क्योंकि सरल है बगुला बन जाना, बहुत आसान है। लेकिन उनकी नजर मछली पर लगी रहेगी। योगी बैठा हो भला आंख बंद किए, हो सकता है नजर तुम्हारी जेब पर लगी हो। बाहर से तो कोई भी साध ले सकता है आसन, प्राणायाम, नियम, मर्यादा। सवाल है भीतर का। यह निष्कंपता बाहर की ही तो नहीं है, अन्यथा सर्कस की है। ___ यह निष्कंपता अगर बाहर ही बाहर है, और भीतर कंपन चल रहा है, और भीतर आपाधापी मची है, और भीतर चिंतन और विचार चल रहा है, और वासनाएं दौड़ रही हैं, और भीतर कोई परमात्मा को पा लेने की मस्ती नहीं बज रही है, और भीतर कोई गीत की गुनगुन नहीं है, भीतर कोई नाच नहीं चल रहा है...। ऐसा समझो बुद्ध और मीरा बिलकुल एक जैसे हैं। फर्क इतना ही है कि जो मीरा के बाहर है, वह बुद्ध के भीतर है। जो मीरा के भीतर है, वह बद्ध के बाहर है। एक सिक्का सीधा रखा है, एक सिक्का उलटा रखा है। सिक्के दोनों एक हैं। जो भीतर जाएगा वही पहचान पाएगा। और इसलिए मैं कहता हूं कि मुझे दोनों रास्ते स्वीकार हैं। तुम अगर बुद्ध के अनुयायियों से मीरा की बात कहोगे, वे कहेंगे, कहां की अज्ञानी स्त्री की बात उठाते हो? जैनों से जाकर कहो, महावीर के अनुयायियों से कहो मीरा बात, वे कहेंगे कि आसक्ति, राग? कृष्ण का भी हुआ तो क्या! मोह? कहीं बुद्धपुरुष नाचते हैं? यह तो सांसारिकों की बात है। और कहीं बुद्धपुरुष ऐसा रोते हैं, याद करते हैं, ऐसा इंतजार करते हैं? कहीं बुद्धपुरुष ऐसा कहते हैं कि सेज सजाकर रखी है, तुम कब आओगे? न, जैन कहेंगे, यह तो अज्ञानी है मीरा। जैन तो कृष्ण को भी ज्ञानी नहीं मान सकते। वह बांसुरी बाधा डालती है। ज्ञानी के ओंठों पर बांसुरी जंचती नहीं। करके देख लो कोशिश, किसी जैन-मंदिर में जाकर महावीर के मुंह पर बांसुरी रख आओ, वे पुलिस में रिपोर्ट कर देंगे तुम्हारी, कि तुमने हमारे भगवान बिगाड़ दिए। यह दुष्कर्म होगा वहां! यह दुर्घटना मानी जाएगी! यहां तुम बांसुरी जैन-मंदिर में लेकर आए कैसे? और महावीर के ओंठ पर रखने की हिम्मत कैसे की? __ अनुयायियों के साथ बड़ा खतरा है। वे ऐसे ही हो जाते हैं जैसे घोड़ों की आंखों पर पट्टियां बंधी होती हैं-बस एक तरफ दिखाई पड़ता है। तांगे में जुते घोड़े देखे? बस वैसे ही अनुयायी होते हैं। बस एक तरफ दिखाई पड़ता है। जीवन का विस्तार खो जाता है। संप्रदाय का यही अर्थ है। 50
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy