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उठो...तलाश लाजिम है
धर्म तो बहुआयामी है। संप्रदाय एक आयामी है, वन डायमेंशनल है। बस उन्होंने बुद्ध को देखा, समझा कि बात खतम हो गई। बुद्ध बहुत खूब हैं, लेकिन बुद्ध होने के और भी बहुत ढंग हैं। जिंदगी बड़ी अनंत आयामी है। परमात्मा किसी पर चुक नहीं जाता। हजार-हजार रंगों में, हजार-हजार फूलों में, हजार-हजार ढंगों में अस्तित्व खिलता है और नाचता है। · मगर दो बड़े बुनियादी ढंग हैं। एक ध्यान का, और एक प्रेम का। मीरा प्रेम से पहुंची। जो प्रेम से पहुंचेगा, उसकी मस्ती बाहर नाचती हुई होगी, और भीतर ध्यान होगा। भीतर मौन होगा, सन्नाटा होगा। मीरा को भीतर काटोगे, तो तुम बुद्ध को पाओगे वहां। और मैं तुमसे कहता हूं, अगर बुद्ध की भी तुम खोजबीन करो और भीतर उतर जाओ, तो तुम वहां मीरा को नाचता हुआ पाओगे। इसके अतिरिक्त हो नहीं सकता। क्योंकि जब तक ध्यान मस्ती न बने, और जब तक मस्ती ध्यान न बने, तब तक अधूरा रह जाता है सब। __इसलिए कभी यह मत सोचना कि जिस ढंग से तुमने पाया, वही एक ढंग है।
और कभी दूसरे के ढंग को नकार से मत देखना। और कभी दूसरे के ढंग को निंदा से मत देखना, क्योंकि वह अहंकार की चालबाजियां हैं। सदा ध्यान रखना, हजार-हजार ढंग से पाया जा सकता है। बहुत हैं रास्ते उसके। बहुत हैं द्वार उसके मंदिर के। तुम जिस द्वार से आए, भला। और भी द्वार हैं। और दो प्रमुख-द्वार हैं। होने ही चाहिए। क्योंकि स्त्री और पुरुष दो व्यक्तित्व के मूल ढंग हैं। ___ स्त्री यानी प्रेम। पुरुष यानी ध्यान। पुरुष अकेला होकर उसे पाता है। स्त्री उसके साथ होकर उसे पाती है। पुरुष सब भांति अपने को शून्य करके उसे पाता है। स्त्री सब भांति अपने को उससे भरकर पाती है। मगर जब मैं स्त्री और पुरुष कह रहा हूं, तो मेरा मतलब शारीरिक नहीं है। बहुत पुरुष हैं जिनके पास प्रेम का हृदय है, वे प्रेम से ही पाएंगे। बहुत स्त्रियां हैं जिनके पास ध्यान की क्षमता है, वे ध्यान से पाएंगी।
मगर यह बात तुम सदा ही ध्यान रखना कि जो तुम बाहर,पाओगे, उससे विपरीत तुम भीतर पाओगे। क्योंकि विपरीत से जुड़कर ही सत्य निर्मित होता है। सत्य विरोधाभासी है। सत्य पैराडाक्स है।
आज इतना ही।
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