________________
एस धम्मो सनंतनो
हम सृष्टि कहते हैं। जब लहरें नहीं होती उसको हम प्रलय कहते हैं। अगर सारी लहरों को सोचें, तो सृष्टि और प्रलय। अगर एक-एक लहर का हिसाब करें, तो जन्म और मृत्यु। जब लहर नहीं होती, तो मृत्यु। जब लहर होती है, तो जन्म। लेकिन जब लहर मिट जाती है तब क्या सच में ही मिट जाती है? यही सवाल है गहरा। लहर सच में मिट जाती है? आकार मिटता होगा, जो लहर में था। जो लहर में वस्तुतः था, वह तो कैसे मिटेगा? जो था, वह तो नहीं मिटता, वह तो सागर में फिर भी होता है। बड़ा होकर होता है, विराट होकर होता है।
तुम रहोगे, तुम जैसे नहीं। तुम रहोगे, बूंद जैसे नहीं। तुम रहोगे, सीमित नहीं। पता-ठिकाना न रहेगा, नाम-रूप न रहेगा। लेकिन जो भी तुम्हारे भीतर घनीभूत है इस क्षण, वह बचेगा, विराट होकर बचेगा। तुम मिटोगे, लेकिन मिटना मौत नहीं है। तुम मिटोगे, मिटना ही होना है।
आखिरी प्रश्नः
पिछले एक प्रश्नोत्तर में आपने समर्पण और भक्ति में भीतर होश, बाहर बेहोशी कही है, और ध्यानी और ज्ञानी को भीतर से बेहोशी और बाहर से होश कहा है। यह ध्यानी को किस तरह की भीतर की बेहोशी होती है? और बाहर फिर वह किस चीज का होश रखता है, किस तरह से होश रखता है, जब कि भीतर बेहोशी रहती है? क्या मेरे सुनने या समझने में कहीं गलती हो रही है? कृपया फिर से ठीक से समझाकर कहें।
नहीं -सुनने में कोई गलती नहीं हुई। समझने में गलती हो रही है। क्योंकि
-समझ विरोधाभास को नहीं समझ पाती। सुन तो लोगे; कितनी ही विरोधाभासी बात कहूं, सुन तो लोगे। और यह भी समझ लोगे कि विरोधाभासी है,
और यह भी समझ लोगे कि सुन लिया, लेकिन फिर भी समझ न पाओगे। क्योंकि जिसको तुम समझ कहते हो वह विरोधाभास को समझ ही नहीं सकती। इसीलिए तो विरोधाभास कहती है। मैं फिर से दोहरा देता हूं, बात बड़ी सीधी है। जटिल मालूम होती है, क्योंकि बुद्धि सीधी-सीधी बात को नहीं पकड़ पाती। ___ एक तो है भक्त, प्रेमी। वह नाचता है। तुम उसकी बेहोशी को-जब मैं कहता हूं बेहोशी, तो मेरा मतलब है उसकी मस्ती-तुम उसके जाम को छलकते बाहर से भी देख लेते हो। मदिरा बही जा रही है। मीरा के नाच में, चैतन्य के भजन में, कुछ भीतर जाकर खोजना न होगा। उसकी मस्ती बाहर है। मौजे-दरिया, लहरों में है।
48