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________________ एस धम्मो सनंतनो और बड़ी आशा रखी है। जिस दिन तुम उपलब्ध होते हो, तुम ही नहीं नाचते, परमात्मा भी नाचता है। तुम ही अकेले नाचे तो क्या नाच! परमात्मा भी खुश होता है। सारा अस्तित्व खुश होता है। एक फतह और मिली। एक विजय-यात्रा का चरण और पूरा हुआ। जब अपने नफ्स पर इंसान फतह पाता है जो गीत गाती है फितरत किसी को क्या मालूम वह बड़ा चुप है गीत। इसलिए किसी को क्या मालूम! वह बड़ा मौन है। वह उन्हीं को दिखाई पड़ता है जिन्हें अदृश्य दिखाई पड़ने लगा। वह उन्हीं को सुनाई पड़ता है जो सन्नाटे को भी सुन लेते हैं। वह उन्हीं को स्पर्श हो पाता है जो अरूप का भी स्पर्श कर लेते हैं, निराकार से जिनकी चर्चा होने लगी। जो गीत गाती है फितरत किसी को क्या मालूम। तीसरा प्रश्नः आकांक्षा मिटकर अभीप्सा बन जाती है। अभीप्सा की समाप्ति पर क्या कुछ बचता है? स्पष्ट करें। आ का क्षा यानी संसार की आकांक्षाएं। आकांक्षा यानी आकांक्षाएं। एक नहीं, अनेक। संसार अर्थात अनेक। जब आकांक्षा मिटकर अभीप्सा बनती है-अभीप्सा यानी आकांक्षा, आकांक्षाएं नहीं। एक की आकांक्षा का नाम अभीप्सा, अनेक की अभीप्सा का नाम आकांक्षा। जब सारी आकांक्षाओं की किरणें इकट्ठी हो जाती हैं और एक सत्य पर, परमात्मा पर, या मोक्ष पर, या स्वयं पर, निर्वाण पर, कैवल्य पर केंद्रित हो जाती हैं, तो अभीप्सा। आकांक्षा और आकांक्षाओं का जाल जब संग्रहीभूत हो जाता है, तो अभीप्सा पैदा होती है। किरणें जब इकट्ठी हो जाती हैं, तो आग पैदा होती है। किरणें अनेक, आग एक। यहां तक तो समझ में बात आ जाती है कि आदमी धन को चाहता है, पद को चाहता है, पत्नी को चाहता है, बेटे को चाहता है, भाई को चाहता है, जीवन चाहता है, लंबी उम्र चाहता है। यह सब चाहत, ये सब चाहतें इकट्ठी हो जाती हैं और आदमी सिर्फ परमात्मा को चाहता है-यहां तक भी समझ में आ जाता है। क्योंकि बहुत आकांक्षाएं जिसने की हैं वह इसकी भी कल्पना तो कम से कम कर ही सकता है कि सभी आकांक्षाएं इकट्ठी हो गयीं, सभी छोटे नदी-नाले गिर गए एक ही गंगा में और गंगा बहने लगी सागर की तरफ। लेकिन जब आकांक्षा के बाद अभीप्सा भी खो जाती है तब क्या बचता है? नदी-नाले खो जाते हैं गंगा में; फिर जब गंगा खो जाती 46
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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