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________________ उठो...तलाश लाजिम है है। जिसकी याद पूरी आ गई, उसकी फिर याद आने की जगह कहां रही! फिर भूलेंगे कहां? याद कैसे आएगी? याद तभी तक आती है जब भूलना जारी रहता है। जब भूलना ही मिट गया तो याद कैसी! भूलना मिट जाने के साथ याद भी खो जाती है। हद्दे-इंतजार-अब सीमा पार हो गई। लेकिन तभी याद का मजा है जब याद भी नहीं आती। अब एक ही हो गए उससे। अब याद करने के लिए भी फासला और दूरी न रही। किसकी याद करे और कौन करे? किसको पुकारे और कौन पुकारे? जिसे चाहा था, जिसकी चाहत थी, वह जो प्रेमी था और जो प्रेयसी थी, वे दोनों एक हो गए। अपनी ही कोई कैसे याद करे! लूटे मजे उसी ने तेरे इंतजार के जो हद्दे-इंतजार के आगे निकल गया और धर्म की सारी भाषा विरोधाभासी है। होगी ही। क्योंकि धर्म यात्रा का प्रारंभ भी है और अंत भी। वह जन्म भी है और मृत्यु भी। और वह दोनों के पार भी है। इसलिए जल्दी विरोधाभासों में मत उलझ जाना। और उनको हल करने की कोशिश मत करना, समझने की कोशिश करना। तब तुम पाओगे, दोनों की जरूरत है। जो सीढ़ी चढ़ाती है, वही रोक भी लेती है। अगर तुमने बहुत विरोधाभास देखे तो तुम मुश्किल में पड़ोगे। क्योंकि तुम एक तो कर लोगे, फिर दूसरा करने में अटकोगे। तुमने अगर यह कहा, तुमने अगर यह सुन लिया कि परमात्मा याद करने से मिलता है, और तुम याद ही करते रहे, और तुम कभी हद्दे-इंतजार के आगे न गए, तो कभी परमात्मा न मिलेगा। राम-राम जपते रहोगे, तोता-रटंत रहेगी। कंठ में रहेगा, हृदय तक न जाएगा। क्योंकि जो हृदय में चला गया, उसकी कहीं याद करनी पड़ती है? याद होती रहती है, करनी नहीं पड़ती। होती रहती है कहना भी ठीक नहीं, क्योंकि दो याद के बीच भी खाली जगह कहां? सातत्य बना रहता है। तब हद्दे-इंतजार। और ऐसी घड़ी जब घटती है, तो ऐसा नहीं है, कि जब तुम विरोधाभास की सीमा के पार निकलते हो, और जब तुम पैराडाक्स और विरोधाभास का अतिक्रमण करते हो, तो ऐसा नहीं है कि तुम ही परम आनंद को उपलब्ध होते हो, तुम्हारे साथ सारा अस्तित्व उत्सव मनाता है। क्योंकि तुम्हारे साथ सारा अस्तित्व भी अतिक्रमण करता है। एक सीमा और पार हुई। जब अपने नफ्स पर इंसान फतह पाता है जो गीत गाती है फितरत किसी को क्या मालूम जो गीत गाती है फितरत किसी को क्या मालूम-जब सारी प्रकृति गीत गाती है, जब सारा अस्तित्व तुम्हारे उत्सव में सम्मिलित हो जाता है! क्योंकि तुम अलग-थलग नहीं हो, तुममें अस्तित्व ने कुछ दांव पर लगाया है, तुम अस्तित्व के दांव हो, पासे हो, परमात्मा ने तुम्हारे ऊपर बड़ा दांव लगाया है,
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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