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________________ एस धम्मो सनंतनो हैं। ऐसा समझो कि कुछ तो ऐसे लोग हैं जो सीढ़ियों पर पैर ही नहीं रखते, ऊपर जाने की यात्रा ही शुरू नहीं होती । और कुछ ऐसे हैं जो सीढ़ियों को पकड़कर बैठ हैं। सीढ़ियां नहीं छोड़ते । जो सीढ़ियों के नीचे रह गया, वह भी ऊपर न पहुंच पाया; और जो सीढ़ियों पर रह गया, वह भी ऊपर न पहुंच पाया। मैं तुमसे कहता हूं, सीढ़ियां पकड़ो भी, छोड़ो भी । गए मैंने सुना है, एक तीर्थयात्रियों की ट्रेन हरिद्वार जा रही थी। अमृतसर पर गाड़ी खड़ी थी। और एक आदमी को लोग जबर्दस्ती घसीटकर गाड़ी में रखना चाह रहे थे। लेकिन वह कह रहा था कि भाई, इससे उतरना तो नहीं पड़ेगा? उन्होंने कहा, उतरना तो पड़ेगा। जब हरिद्वार पहुंच जाएगी, तो उतरना पड़ेगा। तो उस आदमी ने कहा—वह बड़ा तार्किक आदमी था - उसने कहा, जब उतरना ही है तो चढ़ना क्या? यह तो विरोधाभासी है । चढ़ो भी, फिर उतरो भी। लेना-देना क्या है ? हम चढ़ते ही नहीं। गाड़ी छूटने के करीब हो गई है, सीटी बजने लगी है, और भाग- - दौड़ मच रही है। - आखिर उसके साथियों ने— जो उसके यात्री दल के साथी थे - उन्होंने उसको पकड़ा और वह चिल्लाता ही जा रहा है कि जब उतरना है तो चढ़ना क्या, मगर उन्होंने कहा कि अब इसकी सुनें! समझाने का समय भी नहीं, उसको चढ़ा दिया। फिर वही झंझट हरिद्वार के स्टेशन पर मची। वह कहे कि उतरेंगे नहीं। क्योंकि जब चढ़ ही गए तो चढ़ गए। अब उतर नहीं सकते। वह आदमी तार्किक था । वह यह कह रहा है कि विरोधाभासी काम मैं नहीं कर सकता हूं। वह किसी विश्वविद्यालय तर्क का प्रोफेसर होगा ! जब मैं तुमसे कहता हूं, संसार की आकांक्षा छोड़ो - अमृतसर की स्टेशन पर; फिर तुमसे कहता हूं, अब जिस ट्रेन में चढ़ गए वह भी छोड़ो- हरिद्वार पर । परमात्मा का घर आ गया, हरिद्वार आ गया, उसका द्वार आ गया, अब यह ट्रेन छोड़ो। तुम्हें उस आदमी पर हंसी आती है। लेकिन अगर तुम अपने भीतर खोजोगे, तुम उस आदमी को छिपा हुआ पाओगे । लूटे मजे उसी ने तेरे इंतजार के ate - इंतजार के आगे निकल गया विरोधाभास है ! लूटे मजे उसी ने तेरे इंतजार के जो ह - इंतजार के आगे निकल गया इंतजार का मजा ही तब है, जब इंतजार भी न रह जाए। याद तभी पूरी आती है, जब याद भी नहीं आती। इसे थोड़ा कठिन होगा समझना। क्योंकि जब तक याद आती है, उसका मतलब अभी याद पूरी आई नहीं । बीच-बीच में भूल-भूल जाती होगी, तभी तो याद आती 44
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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