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________________ उठो... तलाश लाजिम है बीच में बुद्धत्व उपलब्ध हो जाता है। तो आदमी जाग जाता है जन्म और मृत्यु दोनों से। जिस जन्म की मृत्यु होनी है, उन दोनों के बीच जीवन तो नहीं हो सकता; आभास होगा। तो जब जन्म की मृत्यु ही हो जानी है, तो इस जीवन का क्या भरोसा ? तो फिर हम किसी और जीवन की खोज करें- किसी और जीवन की, जहां न जन्म हो, न मृत्यु । समझें इस प्रश्न को अब । यदि मैं तुमसे कहूं आकांक्षा न करो, तो तुम यात्रा ही शुरू न करोगे, जन्म ही न होगा। अगर मैं तुमसे यह न कहूं कि आकांक्षा भी छूट जानी चाहिए, तो तुम कभी पहुंचोगे नहीं। मोक्ष की आकांक्षा मोक्ष की यात्रा का पहला कदम है। और मोक्ष की आकांक्षा का त्याग मोक्ष की यात्रा का अंतिम कदम है। दोनों मुझे तुमसे कहने होंगे। दुनिया में दो तरह के लोग हैं। एक हैं, जो कहते हैं, जब आकांक्षा से बाधा ही पड़ती है तो क्या मोक्ष की आकांक्षा करना ! फिर हम जैसे हैं वैसे ही भले हैं। इससे यह मत समझ लेना कि उन्होंने संसार की आकांक्षाएं छोड़ दीं। उन्होंने सिर्फ मोक्ष की आकांक्षा न की। उन्होंने अपने को धोखा दे लिया। संसार की आकांक्षाएं तो वे किए ही चले जाएंगे। क्योंकि संसार की आकांक्षाएं तो तभी छूटती हैं जब कोई मोक्ष की आकांक्षा करता है। जब कोई मोक्ष की आकांक्षा पर सब दांव पर लगाता है, पूरा दिल दांव पर लगाता है, तब संसार की आकांक्षाएं छूटती हैं। तब संसार की आकांक्षाओं में जो ऊर्जा संलग्न थी वह मुक्त होती है, मोक्ष की तरफ लगती है। लेकिन जो मोक्ष की तरफ की आकांक्षा किए चला जाता है, वह भी भटक जाता है। क्योंकि अंततः वह आकांक्षा भी बाधा बन जाएगी। एक दिन उसे भी छोड़ना है। ऐसा समझो, रात हम दीया जलाते हैं। दीए की बाती और तेल, दीया जलना शुरू होता है । तो दीए की बाती पहले तो तेल को जलाती है । फिर जब तेल जल जाता है, तो दीए की बाती अपने को जला लेती है। सुबह न तेल बचता है, न बाती बचती है। तब समझो कि सुबह हुई। फिर भोर हुई। तो पहले तो संसार की आकांक्षाओं का तुम तेल की तरह उपयोग करो, और मोक्ष की आकांक्षा का बाती की तरह । तो संसार की सारी आकांक्षाओं को जला दो मोक्ष की बात को जलाने में। तेल का उपयोग कर लो, ईंधन का उपयोग कर लो। सारी आकांक्षाएं इकट्ठी कर लो संसार की, और मोक्ष की एक आकांक्षा पर समर्पित कर दो। झोंक दो सब। मगर ध्यान रखना, जिस दिन सब तेल चुक जाएगा, उस दिन यह बाती भी जल जानी चाहिए। नहीं तो सुबह न होगी । यह बाती कहीं बाधा न बन जाए। तो एक तो सांसारिक लोग हैं, जो कभी मोक्ष की आकांक्षा ही नहीं करते। फिर दूसरे मंदिरों, मस्जिदों में बैठे हुए धार्मिक लोग हैं, जिन्होंने संसार की आकांक्षा छोड़ दी और परमात्मा की आकांक्षा पकड़ ली। अब उस आकांक्षा को नहीं छोड़ पा रहे . 43
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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