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उठो...तलाश लाजिम है
था, यह पहले मौके पर इसका नाम पता चला। जब लोगों को इतना बेचैन देखा तो वह खिलखिलाकर हंसने लगा। उस सन्नाटे में उसकी खिलखिलाहट ने और लोगों को चौंका दिया कि यहां एक ही पागल नहीं है-यह बुद्ध तो, दिमाग खराब मालूम होता है, एक यह भी आदमी पागल है। यह कोई हंसने का वक्त है? यह बुद्ध को क्या हो गया है? और यह महाकाश्यप क्यों हंसता है?
और बुद्ध ने आंख उठाई और महाकाश्यप को इशारा किया, और फूल उसे भेंट कर दिया। और भीड़ से यह कहा, जो मैं शब्दों से तुम्हें दे सकता था, तुम्हें दिया। जो शब्दों से नहीं दिया जा सकता, वह महाकाश्यप को देता हूं। एक यही समझ पाया। तुम सुनने वाले थे, यह एक देखने वाला था।
यही कथा झेन के जन्म की कथा है। झेन शब्द आता है ध्यान से। जापान में झेन हो गया, चीन में चान हो गया, लेकिन मूलरूप है ध्यान। बुद्ध ने उस दिन ध्यान दे दिया। झेन फकीर कहते हैं-ट्रांसमिशन आउटसाइड स्क्रिप्चर्स। शास्त्रों के बाहर दान। शास्त्रों से नहीं दिया, उस दिन शब्द से नहीं दिया। महाकाश्यप को सीधा-सीधा दे दिया। शब्द में डालकर न दिया। जैसे जलता हुआ अंगारा बिना राख के दे दिया। महाकाश्यप चुप ही रहा। चुप्पी में बात कह दी गई। जो बुद्ध ने कहा था, कि मुट्ठी भर सूखे पत्ते, ऐसा ही मैंने तुमसे जो कहा है, वह इतना ही है। और जो कहने को है, वह इतना है जितना इस विराट जंगल में सूखे पत्तों के ढेर।
लेकिन मैं तुमसे कहता हूं, उस दिन उस फूल में पूरा जंगल दे दिया। उस दिन कुछ बचाया नहीं। उस दिन सब दे दिया। उस दिन बुद्ध उंडल गए। उस दिन महाकाश्यप का पात्र पूरा भर गया। तब से झेन में यह व्यवस्था रही है कि गुरु उसी को अपना अधिकारी नियुक्त करता है, जो मौन में लेने को राजी हो जाता है। जो शब्द की जिद करता है, वह सुनता है, ठीक है। साधता है, ठीक है। लेकिन वह खोजता उसे है अपने उत्तराधिकारी की तरह, जो शून्य में और मौन में लेने को राजी हो जाता है। जैसे बुद्ध ने उस दिन महाकाश्यप को फूल दिया। ऐसे ही शून्य में, ऐसे ही मौन में। .
तो ऐसा नहीं है कि बुद्ध ने जो कहा है वही सब है। वह तो शुरुआत है, वह तो बारहखड़ी है। उसका सहारा लेकर आगे बढ़ जाना। वह तो ऐसा ही है जैसे हम स्कूल में बच्चों को सिखाते हैं ग गणेश का—या अब सिखाते हैं ग गधा का। क्योंकि अब धार्मिक बात तो सिखाई नहीं जा सकती, राज्य धर्मनिरपेक्ष है, तो गणेश की जगह गधा। गणेश लिखो तो मुसलमान नाराज हो जाएं, कि जैन नाराज हो जाएं! गधा सिक्यूलर है, धर्मनिरपेक्ष है। वह सभी का है। ग गणेश का। न तो ग गणेश का है, न ग गधे का है। ग ग का है। लेकिन बच्चे को सिखाते हैं। फिर ऐसा थोड़े ही है कि वह सदा याद रखता है कि जब भी तुम कुछ पढ़ो तब बार-बार जब भी ग आ जाए, तो कहो ग गणेश का। तो पढ़ ही न पाओगे। पढ़ना ही मुश्किल हो जाएगा।