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एस धम्मो सनंतनो
वे अपनी भाषा बोलते। ___एक सुबह वे फूल लेकर आए हैं। ऐसा कभी न हुआ था। कभी वे कुछ लेकर न आए थे। और वे बैठ गए हैं बोलने के लिए, भीड़ सुनने को आतुर है। और वे फूल को देखे चले जाते हैं। धीरे-धीरे भीड़ बेचैन होने लगी, क्योंकि लोग सुनने को आए थे, और बुद्ध उस दिन दिखा रहे थे। जो लोग सुनने को आए हैं वे देखने को राजी नहीं होते।
यह बड़े मजे की बात है। तुम अगर हीरे की बाबत सुनने आए हो, और मैं हीरा लेकर भी बैठ जाऊं तो भी तुम बेचैन हो जाओगे। क्योंकि तुम सुनने आए थे। तुम कानों का भरोसा करने आए थे। मैंने तुम्हारी आंखों को पुकारा, तुम्हारी आंखें बंद हैं। हीरे की बात करूं, तुम सुन लोगे। हीरा दिखाऊं, तुम्हें दिखाई ही न पड़ेगा।
बुद्ध फूल लिए बैठे रहे। उस दिन बुद्ध ने एक परम उपदेश दिया, जैसा उन्होंने कभी न दिया था। उस दिन बुद्ध ने अपना बुद्धत्व सामने रख दिया। मगर देखने वाला चाहिए। सुनने वाले थे। आंख के अंधे थे, कान के कुशल थे।
तुम्हारे सब शास्त्र कान से आए हैं। सत्य आंख से आता है। सत्य प्रत्यक्ष है। सुनी हुई बात नहीं। सत्य कोई श्रुति नहीं है, न कोई स्मृति है। सत्य दर्शन है।
उस दिन बुद्ध बैठे रहे। लोग परेशान होने लगे। बुद्धत्व सामने हो, लोग परेशान होने लगे! अंधे रहे होंगे। घड़ी पर घड़ी बीतने लगी। और लोग सोचने लगे होंगे 'अब घर जाने की, कि यह मामला क्या है? और कोई कह भी न सका। बुद्ध से कहो भी क्या, कि आप यह क्या कर रहे हैं? बैठे क्यों हैं? बोलो कुछ। बोलो तो हम सुनें। शब्दों तब हमारी पहुंच है। किसी को यह न दिखाई पड़ा कि यह आदमी क्या दिखा रहा है।
फूल को बुद्ध देखते रहे। परमशून्य। एक विचार की तरंग भीतर नहीं। मौजूद, और मौजूद नहीं। उपस्थित और अनुपस्थित। विचार का कण भी नहीं। परम ध्यान की अवस्था। समाधि साकार। और हाथ में खिला फूल। प्रतीक पूरा था। ऐसी समाधि साकार हो, तो ऐसा जीवन का फूल खिल जाता है। कुछ और कहने को न था। अब और कहने को बचता भी क्या है? पर आंख के अंधे!
तुम्हीं सोचो। आज मैं बोलता न और फूल लेकर आकर बैठ गया होता! तुम इधर-उधर देखने लगते। तुम लक्ष्मी की तरफ देखते कि मामला क्या है? दिमाग खराब हो गया? तुम उठने की तैयारी करने लगते। तुम एक-दूसरे की तरफ देखते कि अब क्या करना है? ___ जब ऐसी बेचैनी की लहर सब तरफ फैलने लगी-उतने चैन के सामने भी लोग बेचैन हो गए, उतनी शांति के सामने भी लोग अशांत हो गए—तब एक बुद्ध का शिष्य महाकाश्यप...इसके पहले उसका नाम भी किसी ने न सुना था। क्योंकि आंख वालों का अंधों से मेल नहीं होता। इसका नाम भी पहले किसी ने नहीं सुना
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