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________________ उठो...तलाश लाजिम है का आता है जिसका जीवन में थोड़ा अनुभव हो, सपने भी जीवन का ही प्रतिफलन होते हैं! तो बुद्ध ने तुमसे क्या कहा? बुद्ध ने कहा कि भागो, इस मकान में आग लगी है। आग लगी न थी। लिंची ठीक कहता है, बुद्ध झूठ बोले। __ मगर लिंची रोज उनको धन्यवाद भी देता है कि तुम्हारी अनुकंपा कि तुम झूठ बोले, नहीं तो मैं भागता ही न। घर में आग लगी है! बुद्ध ने तुम्हें भयभीत कर दिया। तुम्हारे दुख के चित्र उभारे, तुम्हारे छुपे दुख को बाहर निकला। तुमने जो दबा रखा है अपने भीतर अंधकार, उसको प्रगट किया। तुम्हारे दुख को इतना उभारा कि तुम घबड़ा गए, तुम भयभीत हो गए। और जब बुद्ध ने कहा, इस घर में आग लगी है, तो तुम घबड़ाहट में भाग खड़े हुए। तुम भूल ही गए इनकार करना कि बाहर तो है ही नहीं, जाएं कहां? जब घर में आग लगी हो तो कौन सोच-विचार की स्थिति में रह जाता है ? भाग खड़े हुए। __अमरीका में एक मनोवैज्ञानिक प्रयोग कर रहा था। एक सिनेमागृह में जब लोग आधा घंटा तक पिक्चर देखने में तल्लीन हो चुके थे, अचानक एक आदमी जोर से चिल्लाया-आग! आग!! उस आदमी को बिठा रखा था एक मनोवैज्ञानिक ने। भगदड़ शुरू हो गई। मैनेजर चिल्ला रहा है कि कहीं कोई आग नहीं है, लेकिन कोई सुनने को राजी नहीं। जब एक दफा भय पकड़ ले! - लोगों ने दरवाजे तोड़ डाले, कुर्सियां तोड़ डालीं, भीड़-भड़क्कम हो गई। एक-दूसरे के ऊपर भाग खड़े हुए। बच्चे गिर गए, दब गए। बामुश्किल कब्जा पाया जा सका। जब लोग बाहर आ गए, तभी उनको भरोसा आया कि किसी ने मजाक कर दी। लेकिन एक मनोवैज्ञानिक प्रयोग कर रहा था कि लोग शब्दों से कितने प्रभावित हो जाते हैं। आग! बस काफी है। फिर तुम यह भी नहीं देखते कि आग है भी, या नहीं। बुद्ध ने तुम्हारे दुख को उभारा। बुद्ध चिल्लाए, आग! तुम भाग खड़े हुए। उसी भागदौड़ में तुममें से कुछ बाहर निकल गए। लिंची उन्हीं में से है, जो बाहर निकल गया। अब वह कहता है, खूब झूठ बोले! कहीं आग न लगी थी। कहीं धुआं भी न था, आग तो दूर। मगर उसी भय में बाहर आ गए। इसलिए चरणों में सिर रखता है कि न तुम चिल्लाते, न हम बाहर आते। __मैं भी तुमसे न मालूम कितने-कितने ढंग के झूठ बोले जाता हूं। जानता हूं, सौभाग्यशाली होंगे तुममें वे, जो किसी दिन उन झूठों को पहचान लेंगे। लेकिन वे तुम तभी पहचान पाओगे जब तुम बाहर निकल चुके होओगे। तब तुम नाराज न होओगे। तुम अनुगृहीत होओगे। बुद्ध ने तुम्हारी भाषा बोली। तुम्हें जगाना है, तुम्हारी भाषा बोलनी ही जरूरी है। बुद्ध अपनी भाषा तुमसे नहीं बोले। हां, बुद्ध के पास कोई बुद्धपुरुष होता तो उससे 30
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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