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एस धम्मो सनंतनो
कहा, बहुत बड़ा है। लेकिन बहुत से कहीं पता चलता है! कुएं के मेंढक को बहुत बड़े का क्या मतलब? कुएं का मेंढक! आधे कुएं में छलांग लगाई उसने और कहा, इतना बड़ा। आधा कुआं, इतना बड़ा। उसने कहा कि नहीं-नहीं, बहुत बड़ा है। तो उसने पूरी छलांग लगाई। कहा, इतना बड़ा? लेकिन अब उसे संदेह पैदा होने लगा। सागर के मेंढक ने कहा, भाई! बहुत बड़ा है।
उसे भरोसा तो नहीं आया। लेकिन फिर भी उसने एक और आखिरी कोशिश की। उसने पूरा चक्कर कुएं का दौड़कर लगाया। कहा, इतना बड़ा? सागर के मेंढक ने कहा, मैं तुमसे कैसे कहूं? बहुत बड़ा है। इस कुएं से उसका कोई पैमाना नहीं। उसका कोई नाप-जोख नहीं हो सकता। तो कुएं के मेंढक ने कहा, झूठ की भी एक सीमा होती है। किसी और को धोखा देना। हम ऐसे नासमझ नहीं हैं। तुम किसको. मूढ़ बनाने चले हौ? अपनी राह लो। इस कुएं से बड़ी चीज न कभी सुनी गई, न देखी गई। अपने मां-बाप से, अपने पुरखों से भी मैंने इससे बड़ी चीज की कोई बात नहीं सुनी। वे तो बड़े अनुभवी थे, मैं नया हो सकता हूं। हम दर-पीढ़ी इस कुएं में
अगर मैं तुमसे बाहर की बात आकर कहूं तुम्हारे अंधकार-कक्ष में, तुम भरोसा न करोगे। इसीलिए तो नास्तिकता पैदा होती है। जब भी कोई परमात्मा में जाकर लौटता है, और तुम्हें खबर देता है, और वह इतना लड़खड़ा गया होता है अनुभव से—वह इतना अवाक और आश्चर्यचकित होकर लौटता है कि उसकी भाषा के पैर डगमगा जाते हैं। अनुभव इतना बड़ा और शब्द इतने छोटे, शब्दों में अनुभव समाता नहीं। वह बोलता है, और बोलने की व्यर्थता दिखाई पड़ती है। वह हिचकिचाता है। वह कहता भी है, और कहते डरता भी है, कि जो भी कहेगा गलत होगा, और जो भी कहेगा वह सत्य के अनुकूल न होगा। क्योंकि भाषा तुम्हारी, अनुभव बाहर का। भाषा दीवालों की, अनुभव असीम का।।
तो मैं क्या करूं तुम्हारे कमरे में आकर? लिंची ठीक कहता है, बुद्ध झूठ बोले। बुद्ध ने चर्चा नहीं की फूलों की, बुद्ध ने चर्चा नहीं की पक्षियों के गीत की, बुद्ध ने चर्चा नहीं की झरनों के कलकल नाद की; बुद्ध ने सूरज की रोशनी की और किरणों के विराट जाल की कोई बात नहीं की। नहीं कि उनको पता नहीं था। उनसे ज्यादा किसको पता था? उन्होंने बात कुछ और की। उन्होंने बात की तुम्हारी दीवालों की, उन्होंने बात की तुम्हारे अंधकार की, उन्होंने बात की तुम्हारी पीड़ा की, तुम्हारे दुख की; उन्होंने पहचाना कि तुम्हें बाहर ले जाने का क्या उपाय हो सकता है।
बाहर के दृश्य तुम्हें आकर्षित न कर सकेंगे। क्योंकि आकर्षण तभी होता है जब थोड़ा अनुभव हो। थोड़ा भी स्वाद लग जाए मिठास का, तो फिर तुम मिठाई के लिए आतुर हो जाते हो। लेकिन नमक ही नमक जीवन में जाना हो, कड़वाहट ही कड़वाहट भोगी हो, मिठास का सपना भी न आया हो कभी, क्योंकि सपना भी उसी
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