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उठो...तलाश लाजिम है
इसलिए बुद्ध के प्रति कृतज्ञता अनुभव होगी। यद्यपि बुद्ध ने तुम्हें धोखा दिया। जीसस तुम्हें इतना धोखा नहीं दे रहे हैं। वे बात वही कह रहे हैं जो है। जैसा आखिर में तुम पाओगे, जीसस ने पहले ही कह दिया।
बुद्ध कुछ और कह रहे हैं। तुम्हें देखकर कह रहे हैं। जैसा नहीं है वैसा कह रहे हैं। लेकिन तुम अनुगृहीत अनुभव करोगे कि कृपा की, करुणा की कि इतना धोखा दिया; अन्यथा मैं खिड़की पर न आता।
तुम चकित होओगे अगर मैं तुमसे कहूं, झेन फकीरों ने कहा भी है, झेन फकीर लिंची ने कहा है, बुद्ध से ज्यादा झूठ बोलने वाला आदमी नहीं हुआ। लिंची रोज पूजा करता है बुद्ध की, सुबह से फूल चढ़ाता है, आंसू बहाता है, लेकिन कहता है, बुद्ध से झूठ बोलने वाला आदमी नहीं। लिंची ने एक बार अपने शिष्यों से कहा कि ये बुद्ध के शास्त्रों को आग लगा दो, ये सब सरासर झूठ हैं। किसी ने पूछा, लेकिन तुम रोज आंसू बहाते हो, रोज सुबह फूल चढ़ाते हो, और हमने तुम्हें घंटों बुद्ध की प्रतिमा के सामने भाव-विभोर देखा है। इन दोनों को हम कैसे जोड़ें? ये दोनों बातें बड़ी असंगत हैं। लिंची ने कहा, उनकी करुणा के कारण वे झूठ बोले। उनके झूठ के कारण मैं वहां तक पहुंचा जहां सच का दर्शन हुआ। बुद्ध अगर सच ही बोलते तो मैं पहुंच न पाता। ___ सभी ज्ञानी बहुत उपाय करते हैं तुम्हें पहुंचाने के। वे सभी उपाय सही नहीं हैं। जैसे तुम घर में बैठे हो, तुम कभी बाहर नहीं गए, मैंने बाहर जाकर देखा कि बड़े फूल खिले हैं, पक्षियों के अनूठे गीतों का राज्य है, सूरज निकला है, खुला मुक्त असीम आकाश है, सब तरफ रोशनी है, और तुम अंधेरे में दबे बैठे हो, और सर्दी में ठिठुर रहे हो, लेकिन तुम कभी बाहर नहीं गए, अब मैं तुम्हें कैसे बाहर ले जाऊं? तुमसे कैसे कहूं, तुम्हें कैसे खबर दूं बाहर के सूरज की? क्योंकि तुम्हारी भाषा में सूरज के लिए कोई पर्यायवाची नहीं है। तुम्हें कैसे बताऊं फूलों के बाबत? क्योंकि तुम्हारी भाषा में फूलों के लिए कोई शब्द नहीं है। रंग तुमने जाने ही नहीं, रंगों का उत्सव तुम कैसे सुनोगे-समझोगे? तुमने सिर्फ दीवाल देखी है। उस दीवाल को तुमने अपनी जिंदगी समझी है। तुमसे कैसे कहं कि ऐसा भी आकाश है, जिसकी कोई सीमा नहीं? तुम कहोगे, हो चुकी बातें, लनतरानी है।
तुमने कहानी सुनी है कि एक मेंढक सागर से आ गया था और एक कुएं में उतर गया था। कुएं के मेंढक ने पूछा, मित्र कहां से आते हो? उसने कहा, सागर से आता हूं। कुएं के मित्र ने पूछा, सागर कितना बड़ा है? क्योंकि उस कुएं के मेंढक ने कुएं से बड़ी कोई चीज कभी देखी न थी। उसी में पैदा हुआ था, उसी में बड़ा हुआ था। कभी कुएं की दीवालों को पार करके बाहर गया भी न था। दीवालें बड़ी भी थीं।
और पार इससे बड़ा कुछ हो भी सकता है, इसे मानने का कोई कारण भी न था। कभी बाहर से भी कोई मेंढक न आया था, जिसने खबर दी हो। सागर के मेंढक ने
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