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________________ एस धम्मो सनंतनो असिद्ध करने का कोई उपाय नहीं रह जाता, तभी कोई चीज स्वीकार की जाती है। __ इसलिए ऐसा घटता है-बट्रेंड रसल जैसा व्यक्ति जो नास्तिक है, इसलिए जीसस को श्रद्धा नहीं दे सकता, हालांकि ईसाई घर में पैदा हुआ है, सारे संस्कार ईसाई के हैं। लेकिन बर्टेड रसल ने एक किताब लिखी है-व्हाय आई एम नाट ए क्रिश्चियन-मैं ईसाई क्यों नहीं हूं? ईसा पर बड़े शक उठाए हैं। शक उठाए जा सकते हैं। क्योंकि ईसा की व्यवस्था में कोई तर्क नहीं है। ईसा कवि हैं। कहानियां कहने में कुशल हैं। विरोधाभासी हैं। उनके शब्द पहेलियां हैं। हां, जो खोज करेगा वह उन पहेलियों के आखिरी राज को खोल लेगा। लेकिन वह तो बड़ी खोज की बात है। और उस खोज में जीवन लग जाते हैं। लेकिन जो पहेली को सीधा-सीधा देखेगा, वह इनकार कर देगा। ___ रसल ने जीसस को इनकार कर दिया। लेकिन रसल ने कहा कि मैं नास्तिक हूं, मगर बुद्ध को इनकार नहीं कर सकता। बुद्ध को इनकार कैसे करोगे? यही तो मैं कह रहा हूं! रसल के मन में भी बुद्ध के प्रति वैसी ही श्रद्धा है, जैसी किसी भक्त के मन में हो। इनकार करने की जगह नहीं छोड़ी इस आदमी ने। इस आदमी ने ऐसी बात ही नहीं कही जो तर्क की कसौटी पर खरी न उतरती हो। बुद्ध वैज्ञानिक द्रष्टा हैं। बुद्ध को इस भांति समझोगे तो तुम्हारे लिए बड़े कारगर हो सकते हैं। हालांकि ध्यान रखना, जैसे-जैसे गहरे उतरोगे पानी में, जैसे-जैसे बुद्ध के फुसलावे में आ जाओगे, वैसे-वैसे तुम पाओगे कि जितना तर्क पहले दिखाई पड़ता था वह पीछे नहीं है। मगर तब कौन चिंता करता है, अपना ही अनुभव शुरू हो जाता है। फिर कौन प्रमाण मांगता है ? प्रमाण तो हम तभी मांगते हैं, जब अपना अनुभव नहीं होता। जब अपना ही अनुभव हो जाता है...। ___ मैं तुम्हें तर्क देता हूं और तर्क से इतना ही तुम्हें राजी कर लेता हूं कि तुम मेरी खिड़की पर आकर खड़े हो जाओ, बस। फिर तो खिड़की से खुला आकाश तुम्हीं को दिखाई पड़ जाता है। फिर तुम मुझसे नहीं पूछते कि आप प्रमाण दें आकाश के होने का। अब प्रमाण देने का प्रश्न ही नहीं उठता है—न तुम मांगते हो, न मैं देता हूं। और तुम मुझे धन्यवाद भी दोगे कि भला किया कि पहले मुझे तर्क से समझाकर खिड़की तक ले आए। क्योंकि अगर तर्क से न समझाया होता तो मैं खिड़की तक आने को भी राजी नहीं होता। मैं एक कदम न चलता। अगर तुमने पहले ही इस आकाश की बात की होती जो मेरे लिए अनजाना है, अपरिचित है, तो मैं हिला ही न होता अपनी जगह से। तुमने भला किया आकाश की बात न की, खिड़की की बात की; असीम की बात न की, सीमा की बात की। तुमने भला किया आनंद की बात न की, दुख-निरोध की बात की। तुमने भला किया ध्यान की बात न की, विचार से मुक्त होने की बात की। तुमने भला किया श्रद्धा न मांगी, वह मैं दे न सकता, तुमने मेरे संदेह का ही उपयोग कर लिया। तुमने कांटे से कांटा निकाल दिया। भला किया। 36
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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