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________________ एस धम्मो सनंतनो तो दो उपाय हैं। बुद्ध को छोड़कर बाकी बुद्धपुरुषों ने परमात्मा की तरफ श्रद्धा जगाई। बुद्ध ने तुम्हारे जीवन के प्रति संदेह जगाया। बात वही है। किसी ने कहा गिलास आधा भरा है। किसी ने कहा गिलास आधा खाली है। बुद्ध ने कहा गिलास आधा खाली है। क्योंकि तुम खाली हो, भरे को तुम अभी समझ न पाओगे। और आधा गिलास खाली है यह समझ में आ जाए, तो जल्दी ही तुम आधा भरा गिलास है उसके करीब पहुंचने लगोगे। तुमसे यह कहना कि आधा गिलास भरा है, गलत होगा, क्योंकि तुम खाली में जी रहे हो। नकार का तुम्हें पता है, रिक्तता का तुम्हें पता है, पूर्णता का तुम्हें कोई पता नहीं। इसलिए बुद्ध ने शून्य को अपना शास्त्र बना लिया। बुद्ध ने तुम्हें देखा, तुम्हारी बीमारी को देखा, तुम्हारी नब्ज पर निदान किया। इसलिए बुद्ध से ज्यादा प्रभावी कोई भी नहीं हो सकता। क्योंकि मनुष्य के मन में बुद्ध को समझने में कोई अड़चन न आई। बुद्ध बहुत सीधे-साफ हैं। ऐसा नहीं कि जिंदगी में जटिलता नहीं है, जिंदगी बड़ी जटिल है। लेकिन बुद्ध बड़े सीधे-साफ हैं। ऐसा समझो कि अगर तुम कबीर से पूछो, या महावीर से पूछो, या कृष्ण से पूछो, तो वे बात वहां की करते हैं—इतने दूर की, कि तुम्हारी आंखों में पास ही नहीं दिखाई पड़ता, उतना दूर तुम्हें कैसे दिखाई पड़ेगा! तो एक ही उपाय है, या तो तुम इनकार कर दो, जो कि ज्यादा ईमानदार है। इसलिए नास्तिक ज्यादा ईमानदार होते हैं बजाय आस्तिकों के। और या तुम्हें दिखाई नहीं पड़ता, लेकिन तुम स्वीकार कर लो, क्योंकि जब महावीर को दिखाई पड़ता है, तो होगा ही। तो तुम भी हां में हां भरने लगो। और तुम कहो कि हां, मुझे भी दिखाई पड़ रहा है। इसलिए जिनको तुम आस्तिक कहते हो, वे बेईमान होते हैं। नास्तिक कम से कम सचाई तो स्वीकार करता है, कि मुझे नहीं दिखाई पड़ रहा है। हालांकि वह कहता गलत ढंग से है। वह कहता है, ईश्वर नहीं है। उसे कहना चाहिए, मुझे दिखाई नहीं पड़ रहा। क्योंकि तुम्हें दिखाई न पड़ता हो इसलिए जरूरी नहीं है कि न हो। बहुत सी चीजें तुम्हें दिखाई नहीं पड़ती हैं, और हैं। बहुत सी चीजें आज नहीं दिखाई पड़तीं, कल दिखाई पड़ जाएंगी। और बहुत सी चीजें दिखाई आज पड़ सकती हैं, लेकिन तुम्हारी आंख बंद है। नास्तिक के कहने में गलती हो सकती है, लेकिन ईमानदारी में चूक नहीं है। नास्तिक यही कहना चाहता है कि मुझे दिखाई नहीं पड़ता। लेकिन वह कहता है, नहीं, ईश्वर नहीं है। उसके कहने का ढंग अलग है। बात वह सही ही कहना चाहता है। आस्तिक बड़ी झूठी अवस्था में जीता है। आस्तिक को दिखाई नहीं पड़ता, वह यह भी नहीं कहता कि मुझे दिखाई नहीं पड़ता। वह यह भी नहीं कहता कि ईश्वर नहीं है। जो नहीं दिखाई पड़ता उसे स्वीकार कर लेता है, किसी और के भरोसे पर। 34
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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