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________________ उठो... तलाश लाजिम है थोड़ा दुख को मिटाने की कोशिश कर लो। अगर न मिटा, तो यह दुख तो है ही, फिर लौट पड़ेंगे। थोड़ा कारागृह के बाहर आओ, घबड़ाओ मत, अगर खुला आकाश न मिला, इधर ही लौट पड़ेंगे। बुद्ध ने जिज्ञासा दी, आस्था नहीं । बुद्ध ने इंक्वायरी दी, अन्वेषण दिया, आस्था नहीं । बुद्ध ने इतना ही कहा, ऐसे मत बैठे रहो। ऐसे बैठे तो कुछ न होगा। बैठे-बैठे तो कुछ न होगा। खोज लाजिम है । तुम दुखी हो, क्योंकि तुमने जीवन की सारी संभावनाएं नहीं खोजीं । तुम दुखी हो, क्योंकि तुमने जन्म के साथ ही समझ लिया कि जीवन मिल गया। जन्म के साथ तो केवल संभावना मिलती है जीवन की, जीवन नहीं मिलता। जन्म के बाद जीवन खोजना पड़ता है। जो खोजता है उसे मिलता है। और जन्म के बाद जो बैठा-बैठा सोचता है कि मिल गया जीवन, यही जीवन है, पैदा हो गए यही जीवन है, वह चूक जाता है। तो बुद्ध ने यह नहीं कहा कि मैं तुमसे कहता हूं कि यह मोक्ष, यह स्वातंत्र्य, यह आकाश, यह परमात्मा मिल ही जाएगा; यह मैं तुमसे नहीं कहता। मैं इतना ही कहता हूं उठो सनमकदे वालो तलाश लाजिम है। खोज जरूरी है। इधर ही लौट पड़ेंगे अगर खुद न मिला और घबड़ाहट क्या है ? यह घर तो फिर भी रहेगा। तुम्हारे मन की धारणाओं में फिर लौट आना, अगर निर्धारणा का कोई आकाश न मिले। लौट आना विचारों में, अगर ध्यान की कोई झलक न मिले। अगर शांत होने की कोई सुविधा- सुराग न मिले, फिर अशांत हो जाना। कौन सी अड़चन है ? अशांत होकर बहुत दिन देख लिया है। अशांति से कोई शांति तो मिली नहीं । बुद्ध कहते हैं, मैं भी तुम्हें एक झरोखे की खबर देता हूं, थोड़ा इधर भी झांक लो - तलाश लाजिम है। बुद्ध ने खोज दी, श्रद्धा नहीं। इसे थोड़ा समझो । बुद्ध ने तुम्हें तुम्हारे जीवन पर संदेह दिया, परमात्मा के जीवन पर श्रद्धा नहीं । यह दोनों एक ही बात हैं। अपने पर संदेह हो जाए, तो परमात्मा पर श्रद्धा आ ही जाती है । परमात्मा पर श्रद्धा आ जाए, तो अपने पर संदेह हो ही जाता है। तुम्हें अगर अपने अहंकार पर बहुत भरोसा है, तो परमात्मा पर श्रद्धा न होगी। तुम अगर अपने को बहुत समझदार समझ बैठे हो, तो फिर तुम्हें किसी मोक्ष, किसी आत्मा में भरोसा नहीं आ सकता । तुमने फिर अपने ज्ञान को आखिरी सीमा समझ ली। फिर विस्तार की जगह और सुविधा न रही। और ज्यादा जानने को तुम मान ही नहीं सकते, क्योंकि तुम यह नहीं मान सकते कि ऐसा भी कुछ है जो तुम नहीं जानते हो। जिसने अपने पर ऐसा अंधा भरोसा कर लिया, वही तो परमात्मा पर भरोसा नहीं कर पाता । जिसने इस तथाकथित जीवन को जीवन समझ लिया, वही तो महाजीवन की तरफ जाने में असमर्थ हो जाता है, पंगु हो जाता है। 33
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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