________________
एस धम्मो सनंतनो
दार्शनिक नहीं। लाओ मैं तुम्हारा कांटा निकाल दूं। कैसे इनकार करोगे इस आदमी को? यह शिक्षक की घोषणा ही नहीं कर रहा है कि मैं शिक्षक हूं, या गुरु हूं। यह तो इतना ही कह रहा है, सिर्फ एक चिकित्सक हूं।
और इस आदमी को देखकर लोगों को भरोसा आया। क्योंकि इस आदमी के जीवन में दुख का कोई कांटा नहीं है। इस आदमी के जीवन में ऐसी परमशांति है, ऐसी विश्रांति है-सब लहरें खो गई हैं पीड़ा की; एक अपूर्व उत्सव नित-नूतन, प्रतिपल नया, अभी-अभी ताजा और जन्मा इस आदमी के पास अनुभव होता है। इस आदमी के पास एक हवा है, जिस हवा में आकर यह दो बातें कर रहा है : अपनी हवा से खबर दे रहा है कि आनंद संभव है, और तुम्हारे दुख की तरफ इशारा कर रहा है कि तुम दुखी हो। दुख के कारण हैं। दुख के कारण को मिटाने का उपाय है।
तो बुद्ध का सारा चिंतन दुख पर खड़ा है। दुख है, दुख के कारण हैं, दुख के कारण को मिटाने के साधन हैं, और दुख से मुक्त होने की संभावना है। इस संभावना के वे स्वयं प्रतीक हैं। जिस स्वास्थ्य को वे तुम्हारे भीतर लाना चाहते हैं, उस स्वास्थ्य को वे तुम्हारे सामने मौजूद खड़ा किए हैं। तुम बुद्ध से यह न कह सकोगे कि चिकित्सक, पहले अपनी चिकित्सा कर। बुद्ध को देखते ही यह तो सवाल ही न उठेगा। और तुम बुद्ध से यह भी न कह सकोगे कि मैं दुखी नहीं हूं। किस मुंह से कहोगे? और कहकर तुम क्या पाओगे? सिर्फ गंवाओगे।।
इसलिए बुद्ध ने तुम्हें देखकर व्यवस्था दी। और बुद्ध यह जानते हैं कि जिस दिन तुम्हारा दुख न होगा, जिस दिन तुम्हारी पीड़ा गिर जाएगी, तुम्हारी आंख के अंधकार का पर्दा कटेगा, तुम जागोगे, उस दिन तुम देख लोगे-मोक्ष है। जो दिखाया जा सकता हो, और जो दिखाने के अतिरिक्त और किसी तरह समझाया न जा सकता हो, उसे दिखाना ही चाहिए। उसकी बात करनी खतरनाक है। क्योंकि अक्सर लोग बातों में खो जाते हैं।
कितने लोग बात के ही धार्मिक हैं। बातचीत ही करते रहते हैं। ईश्वर चर्चा का एक विषय है। अनुभव का एक आयाम नहीं, जीवन को बदलने की एक आग नहीं, सिद्धांतों की राख है। शास्त्रों में लोग उलझे रहते हैं, बाल की खाल निकालते रहते हैं, उससे भी अहंकार को बड़ा रस आता है। बुद्ध ने शास्त्रों को इनकार कर दिया। बुद्ध ने कहा, यह पीछे तुम खोज कर लेना। अभी तो उठो, अभी तो अपने जीवन के दुख को काट लो। बुद्ध ने यह कहा हफीज के शब्दों में
उठो सनमकदे वालो तलाश लाजिम है
इधर ही लौट पड़ेंगे अगर खुदा न मिला उठो मंदिरों वालो, जो तुम बैठ गए हो मंदिरों और मस्जिदों में, सनमकदे वालो! तलाश लाजिम है।
इधर ही लौट पड़ेंगे अगर खुदा न मिला
32