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________________ उठो...तलाश लाजिम है कारागृह की आदत हो जाती है। तो तोता तो थोड़े ही दिन रहा है, तुम तो जन्मों-जन्मों रहे हो। बुद्ध ने कहा, तुमसे मोक्ष की बात करके तुम्हें शर्मिंदा करें! तुमसे मोक्ष की बात करके तुम्हें इनकार करने को मजबूर करें। । क्योंकि ध्यान रखना, जो व्यक्ति बहुत दिन कारागृह में रह गया है वह यह कहना शुरू कर देता है कि कहीं कोई मुक्ति है ही नहीं। यह उसकी आत्मरक्षा है। वह यह कह रहा है कि अगर मोक्ष है तो फिर मैं यहां क्या कर रहा हूं, मैं नपुंसक यहां क्यों पड़ा हूं? अगर मोक्ष है तो मैं मुक्त क्यों नहीं हुआ हूं? फिर सारी जिम्मेवारी अपने पर आ जाती है। ___ लोग ईश्वर को इसलिए थोड़े ही इनकार करते हैं कि ईश्वर नहीं है। या कि उन्हें पता है कि ईश्वर नहीं है। ईश्वर को इनकार करते हैं, क्योंकि अगर ईश्वर है तो हम क्या कर रहे हैं! तो हमारा सारा जीवन व्यर्थ है। लोग मोक्ष को इसलिए इनकार करते हैं कि अगर मोक्ष है तो हम तो केवल अपने बंधनों का ही इंतजाम किए चले जा रहे हैं। तो हम मूढ़ हैं। अगर मोक्ष है, तो जिनको तुम सांसारिक रूप से समझदार कहते हो उनसे ज्यादा मूढ़ कोई भी नहीं। ___ तो आदमी को अपनी रक्षा तो करनी पड़ती है। सबसे अच्छी रक्षा का उपाय है कि तुम कह दो, कहां है आकाश? कहां है मोक्ष? हम भी उड़ना जानते हैं, मगर आकाश ही नहीं है। हम भी परमात्मा को पा लेते-कोई बुद्धों ने ही पाया ऐसा नहीं-हम कुछ कमजोर नहीं हैं, हममें भी बल है, हमने भी पा लिया होता, लेकिन हो तभी न? है ही नहीं। ऐसा कहकर तुम अपनी आत्मरक्षा कर लेते हो। तब तुम अपने कारागृह को घर समझ लेते हो।। ___ जिस कारागृह में बहुत दिन रहे हो, उसे कारागृह कहने की हिम्मत भी जुटानी मुश्किल हो जाती है। क्योंकि फिर उसमें रहोगे कैसे? अगर ईश्वर है, तो संसार में बेचैनी हो जाएगी खड़ी। अगर मोक्ष है, तो तुम्हारा घर तुम्हें काटने लगेगा, कारागृह हो जाएगा। तुम्हारे राग, आसक्ति के संबंध जहर मालूम होने लगेंगे। उचित यही है कि तुम कह दो कि नहीं, न कोई मोक्ष है, न कोई परमात्मा है, यह सब जालसाजों की बकवास है। कुछ सिरफिरों की बातचीत है। या कुछ चालबाजों की अटकलबाजियां हैं। इस तरह तुम अपनी रक्षा कर लेते हो। बुद्ध ने तुम्हें यह मौका न दिया। बुद्ध ने किसी को नास्तिक होने का मौका न दिया। बुद्ध के पास नास्तिक आए और आस्तिक हो गए। क्योंकि बुद्ध ने कहा, दुखी हो। इसको कौन इनकार करेगा? इसे तुम कैसे इनकार करोगे? यह तुम्हारे जीवन का सत्य है। और क्या तुम कहीं ऐसा आदमी पा सकते हो जो दुख से मुक्त न होना चाहता हो? मोक्ष न चाहता हो, लेकिन दुख से मुक्त तो सभी कोई होना चाहते हैं। पीड़ा है, बुद्ध ने कहा, कांटा छिदा है। बुद्ध ने कहा, मैं चिकित्सक हूं, मैं कोई 31
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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