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एस धम्मो सनंतनो
तो अकारण तो कुछ भी नहीं होता, दुख के कारण होंगे। और बुद्ध ने कहा, दुख से तो मुक्त होना चाहते हो कि नहीं होना चाहते ! ईश्वर को नहीं पाना चाहते, समझ में आता है। कुछ सिरफिरों को छोड़कर कौन ईश्वर को पाना चाहता है ? कुछ पागलों को छोड़कर कौन आत्मा की फिक्र कर रहा है। समझदार आदमी ऐसे उपद्रवों में नहीं पड़ते। ऐसी झंझटें मोल नहीं लेते। जिंदगी की झंझटें काफी हैं। अब आत्मा और परमात्मा और मोक्ष, इन उलझनों में कौन पड़े?
बुद्ध ने ये बातें ही नहीं कहीं। तुम इनकार कर सको, ऐसी बात बुद्ध ने कही ही नहीं। इसका उन्होंने बड़ा संयम रखा। उन जैसा संयमी बोलने वाला नहीं हुआ है। उन्होंने एक शब्द न कहा जिसमें तुम कह सको, नहीं। उन्होंने तुम्हें नास्तिक होने की सुविधा नदी ।
इसे थोड़ा समझना। लोगों ने बुद्ध को नास्तिक कहा है, और मैं तुमसे कहता हूं, कि बुद्ध अकेले आदमी हैं पृथ्वी पर जिन्होंने तुम्हें नास्तिक होने की सुविधा नहीं । जिन्होंने तुमसे कहा ईश्वर है, उन्होंने तुम्हें इनकार करने को मजबूर करवा दिया। कहां है ईश्वर ? जिन्होंने तुमसे कहा आत्मा है, उन्होंने तुम्हारे भीतर संदेह पैदा किया। बुद्ध ने वही कहा जिस पर तुम संदेह न कर सकोगे । बुद्ध ने आस्तिकता दी। हां ही कहने की सुविधा छोड़ी, न का उपाय न रखा।
बुद्ध बड़े कुशल हैं। उनकी कुशलता को जब समझोगे तो चकित हो जाओगे, कि जिसको तुमने नास्तिक समझा है उससे बड़ा आस्तिक पृथ्वी पर दूसरा नहीं हुआ। और जितने लोगों को परमात्मा की तरफ बुद्ध ले गए, कोई भी नहीं ले जा सका । और परमात्मा की बात भी न की, हद की कुशलता है। चर्चा भी न चलाई। चर्चा तुम्हारी की, पहुंचाया परमात्मा तक। बात तुम्हारी उठाई, समझा-समझाया तुम्हें, सुलझाव में परमात्मा मिला। सुलझाया तुम्हें, सुलझाव में परमात्मा मिला। दुख काटा तुम्हारा, जो शेष बचा वही आनंद है। बंधन दिखाए, मोक्ष की बात न उठाई।
कारागृह में जो बंद है जन्मों-जन्मों से उससे मोक्ष की बात करके क्यों... क्यों उसे शर्मिंदा करते हो ? और जो कारागृह में बहुत दिनों तक बंद रह गया है, उसे मोक्ष का खयाल भी नहीं रहा । उसे अपने पंख भी भूल गए हैं। आज तुम उसे अचानक आकाश में छोड़ भी दो तो उड़ भी न सकेगा। क्योंकि उड़ने के लिए पहले उड़ने का भरोसा चाहिए। तड़फड़ाकर गिर जाएगा।
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तुमने कभी देखा । तोते को बहुत दिन तक रख लो पिंजड़े में, फिर किसी दिन खुला द्वार पाकर भाग भी जाए, तो उड़ नहीं पाता। पंख वही हैं, उड़ने का भरोसा खो गया । हिम्मत खो गई। यह याद ही न रही कि हम भी कभी आकाश में उड़ते थे, कि हमने भी कभी पंख फैलाए थे, और हमने भी कभी दूर की यात्रा की थी। वह बातें सपना हो गयीं। आज पक्का नहीं रहा ऐसा हुआ था, कि सिर्फ सपने में देखा है । वह बातें अफवाह जैसी हो गयीं। और इतने दिन तक कारागृह में रहने के बाद
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