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________________ उठो...तलाश लाजिम है करते हैं जहां तुम हो। उन्होंने उतना ही कहा है जो कोई भी तर्कनिष्ठ व्यक्ति समझने में समर्थ हो जाएगा। इसलिए बुद्ध का इतना प्रभाव पड़ा सारे जगत पर। बुद्ध जैसा प्रभाव किसी का भी नहीं पड़ा। अगर दुनिया में मुसलमान हैं, तो मोहम्मद के प्रभाव की वजह से कम, मुसलमानों की जबर्दस्ती की वजह से ज्यादा। अगर दुनिया में ईसाई हैं, तो ईसा के प्रभाव से कम, ईसाइयों की व्यापारी-कुशलता के कारण ज्यादा। लेकिन अगर दुनिया में बौद्ध हैं, तो सिर्फ बुद्ध के कारण। न तो कोई जबर्दस्ती की गई है किसी को बदलने की, न कोई प्रलोभन दिया गया है। लेकिन बुद्ध की बात मौजूं पड़ी। जिसके पास भी थोड़ी समझ थी, उसको भी बुद्ध में रस आया। थोड़ा सोचो; बुद्ध ईश्वर की बात नहीं करते। क्योंकि जो भी सोच-विचार करता है, उसे ईश्वर की बात में संदेह पैदा होता है। बुद्ध ने वह बात ही नहीं की। छोड़ो। उसको अनिवार्य न माना। बुद्ध आत्मा तक की बात नहीं करते, क्योंकि जो बहुत सोच-विचार करता है, वह कहता है, यह मैं मान नहीं सकता कि शरीर के बाद बचूंगा। कौन बचेगा? यह सब शरीर का ही खेल है, आज है, कल समाप्त हो जाएगा। किसी ने कभी मरकर लौटकर कहा कि मैं बचा हूं? कभी किसी ने खबर की? ये सब यहीं की बातें हैं। मन को बहलाने के खयाल हैं। 'बुद्ध ने आत्मा की भी बात नहीं कही। बुद्ध ने कहा यह भी जाने दो। क्योंकि ये बातें ऐसी हैं कि प्रमाण देने का तो कोई उपाय नहीं। तुम जब जानोगे, तभी जानोगे; उसके पहले जनाने की कोई सुविधा नहीं। और अगर तुम तर्कनिष्ठ हो, बहुत विचारशील हो, तो तुम मानने को राजी न होओगे। और बुद्ध कहते हैं, कोई ऐसी बात तुमसे कहना जिसे तुम इनकार करो, तुम्हारे मार्ग पर बाधा बन जाएगी। वह इनकार ही तुम्हारे लिए रोक लेगा। बुद्ध कहते हैं, यह भी जाने दो। बुद्ध कहते हैं कि हम इतना ही कहते हैं कि जीवन में दुख है, इसे तो इनकार न करोगे? इसे तो इनकार करना मुश्किल है। जिसने थोड़ा भी सोचा-विचारा है, वह तो कभी इनकार नहीं कर सकता। इसे तो वही इनकार कर सकता है, जिसने सोचा-विचारा ही न हो। लेकिन जिसने सोचा-विचारा ही न हो वह भी कैसे इनकार करेगा, क्योंकि इनकार के लिए सोचना-विचारना जरूरी है। जिसके मन में जरा सी भी प्रतिभा है, थोड़ी सी भी किरण है, जिसने जीवन के संबंध में जरा सा भी चिंतन-मनन किया है, वह भी देख लेगा। अंधा भी देख लेगा। जड़ से जड़ बुद्धि को भी यह बात समझ में आ जाएगी, जीवन में दुख है। आंसुओं के सिवाय पाया भी क्या? इसे बुद्ध को सिद्ध न करना पड़ेगा, तुम्हारा जीवन ही सिद्ध कर रहा है। तुम्हारी कथा ही बता रही है। तुम्हारी भीगी आंखें कह रही हैं। तुम्हारे कंपते पैर कह रहे हैं। __तो बुद्ध ने कहा, जीवन में दुख है। यह कोई आध्यात्मिक सत्य नहीं है, यह तो जीवन का तथ्य है। इसे कौन, कब इनकार कर पाया? और बुद्ध ने कहा, दुख है,
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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