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________________ एस धम्मो सनंतनो नियम नहीं है, कोई मर्यादा नहीं है। जीवन अमर्याद है। वहां न कुछ शुभ है, न अशुभ। जीवन में सर्वस्वीकार है। वहां अंधेरा भी और उजेला भी एक साथ स्वीकार है। ___ मनुष्य के मन का सवाल है। मनुष्य का मन विरोधाभासी बात को समझ ही नहीं पाता। और जिसको तुम समझ न पाओगे, उसे तुम जीवन में कैसे उतारोगे? जिसे तुम समझ न पाओगे, उससे तुम दूर ही रह जाओगे। तो बुद्ध ने वही कहा जो तुम समझ सकते हो। बुद्ध ने सत्य नहीं कहा, बुद्ध ने वही कहा जो तुम समझ सकते हो। फिर जैसे-जैसे तुम्हारी समझ बढ़ेगी वैसे-वैसे बुद्ध तुमसे वह भी कहेंगे जो तुम नहीं समझ सकते। बुद्ध एक दिन गुजरते हैं एक राह से जंगल की। पतझड़ के दिन हैं। सारा वन सूखे पत्तों से भरा है। और आनंद ने बुद्ध से पूछा है कि क्या आपने हमें सब बातें बता दी जो आप जानते हैं? क्या आपने अपना पूरा सत्य हमारे सामने स्पष्ट किया है? बुद्ध ने सूखे पत्तों से अपनी मुट्ठी भर ली और कहा, आनंद! मैंने तुमसे उतना ही कहा है जितने सूखे पत्ते मेरी मुट्ठी में हैं। और उतना अनकहा छोड़ दिया है जितने सूखे पत्ते इस वन में हैं। वही कहा है जो तुम समझ सको। फिर जैसे तुम्हारी समझ बढ़ेगी वैसे-वैसे वह भी कहा जा सकेगा जो पहले समझा नहीं जा सकता था। बुद्ध कदम-कदम बढ़े। आहिस्ता-आहिस्ता। तुम्हारी सामर्थ्य देखकर बढ़े हैं। बुद्ध ने तुम्हारी बूंद को सागर में डालना चाहा है। __ऐसे भी फकीर हुए हैं जिन्होंने सागर को बूंद में डाल दिया है। पर वह काम बुद्ध ने नहीं किया। उन्होंने बूंद को सागर में डाला है। सागर को बूंद में डालने से बूंद बहुत घबड़ा जाती है। उसके लिए बहुत बड़ा दिल चाहिए। उसके लिए बड़ी हिम्मत चाहिए। उसके लिए दुस्साहस चाहिए। उसके लिए मरने की तैयारी चाहिए। बुद्ध ने तुम्हें रफ्ता-रफ्ता राजी किया है। एक-एक कदम तुम्हें करीब लाए हैं। इसलिए बुद्ध के विचार में एक अनुशासन है। ऐसा अनुशासन तुम कबीर में न पाओगे। कबीर उलटबांसी बोलते हैं। कबीर तुम्हारी फिकर नहीं करते। कबीर वहां से बोलते हैं जहां वे स्वयं हैं, जहां मेघ घिरे हैं अदृश्य के, और अमृत की वर्षा हो रही है। जहां बिन घन परत फुहार-जहां मेघ भी नहीं हैं और जहां अमृत की वर्षा हो रही है। बेबूझ बोलते हैं। तो कबीर को तो वे बहुत थोड़े से लोग समझ पाएंगे, जो उनके साथ खतरा लेने को राजी हैं। कबीर ने कहा है, जो घर बारै आपना चलै हमारे संग। जिसकी तैयारी हो घर में आग लगा देने की, वह हमारे साथ हो ले। किस घर की बात कर रहे हैं? वह तुम्हारा मन का घर, तुम्हारी बुद्धि की व्यवस्था, तुम्हारा तर्क, तुम्हारी समझ; जो उस घर को जलाने को तैयार हो, कबीर कहते हैं, वह हमारे साथ हो ले। बुद्ध कहते हैं, घर को जलाने की भी जरूरत नहीं है। एक-एक कदम सही, इंच-इंच सही, धीरे-धीरे सही, बुद्ध तुम्हें फुसलाते हैं। इसलिए बुद्ध वहीं से शुरू
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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