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एस धम्मो सनंतनो
वैज्ञानिक प्रयोग है। तुम भीतर थिर होने की कला को सीख जाओ, सद्धर्म से परिचय होगा, परिचय से श्रद्धा होगी। ___ इसलिए बुद्ध जितने करीब हैं इस सदी के और कोई भी नहीं है। क्योंकि यह सदी संदेह की है; और बुद्ध ने श्रद्धा पर जोर नहीं दिया, बोध पर जोर दिया है। __ 'जो सद्धर्म को नहीं जानता और जिसकी श्रद्धा डांवाडोल है'...होगी ही... 'उसकी प्रज्ञा परिपूर्ण नहीं हो सकती।'
बुद्ध शर्ते नहीं दे रहे हैं, बुद्ध केवल तथ्य दे रहे हैं। बुद्ध कहते हैं, ये तथ्य हैं। सद्धर्म का बोध हो, श्रद्धा होगी। श्रद्धा हो, परिपूर्णता होगी। प्रज्ञा परिपूर्ण होगी। ऐसा न हो, तो प्रज्ञा परिपूर्ण न होगी। और जब तक प्रज्ञा परिपूर्ण न हो, जब तक तुम्हारा जानना परिपूर्ण न हो, तुम्हारा जीवन परिपूर्ण नहीं हो सकता। ___जानने में ही छिपे हैं सारे स्रोत। क्योंकि मूलतः तुम ज्ञान हो। ज्ञान की शक्ति हो। मूलतः तुम बोध हो। इसी से तो हमने बुद्ध को बुद्ध कहा। बोध के कारण। नाम तो उनका गौतम सिद्धार्थ था। लेकिन जब वे परम प्रज्ञा को और बोध को उपलब्ध हुए, तो हमने उन्हें बुद्ध कहा। तुम्हारे भीतर भी बोध उतना ही छिपा है जितना उनके भीतर था। वह जग जाए तो तुम्हारे भीतर भी बुद्धत्व का आविर्भाव होगा। और जब तक यह न हो, तब तक चैन मत लेना। तब तक सब चैन झूठी है। सांत्वना मत कर लेना। तब तक सांत्वना संतोष नहीं है। तब तक तुम मार्ग में ही रुक गए। मंजिल के पहले ही किसी पड़ाव को मंजिल समझ लिया।
'जिसका चित्त अस्थिर है, जो सद्धर्म को नहीं जानता और जिसकी श्रद्धा डांवाडोल है, उसकी प्रज्ञा परिपूर्ण नहीं हो सकती।'
और प्रज्ञा परिपूर्ण न हो, तो तुम अपूर्ण रहोगे। और तुम अपूर्ण रहो, तो अशांति रहेगी। और तुम अशांत रहो, तो दो ही उपाय हैं। एक, कि तुम शांति को खोजने निकलो। और दो, कि तुम अशांति को समझो।
अशांति को समझना बुद्ध का उपाय है। जिसने अशांति को समझ लिया, वह शांत हो जाता है। और जो शांति की तलाश में निकल गया, वह और नई-नई अशांतियां मोल ले लेता है। ___ जीवन को जीने के दो ढंग हैं। एक मालिक का और एक गुलाम का। गुलाम का ढंग भी कोई ढंग है! जीना हो तो मालिक होकर ही जीना। अन्यथा इस जीवन से मर जाना बेहतर है। कम से कम मर जाना सच तो होगा। यह जीवन तो बिलकुल झूठा है। सपना है। गुलाम के ढंग से तुमने जीकर देख लिया, कुछ पाया नहीं। यद्यपि पाने ही पाने की तलाश रही। अब मालिक के ढंग से जीना देख लो। बस शास्त्र बदलना होगा, सूत्र बदलना होगा। इतना ही फर्क करना होगा। अब तक कल के लिए जीते थे, अब आज ही जीयो। अब तक कुछ होने के लिए जीते थे, अब जो हो वैसे ही जीयो। अब तक मूर्छा में जीते थे, अब जागकर जीयो, होश से जीयो।
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