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तथाता में है क्रांति
तो तुम्हें सब डगमगाता दिखाई पड़ेगा। ___कभी तुमने खयाल किया, घर में दीया जल रहा हो और उसकी ज्योति डगमगाती हो, तो सब तरफ छायाएं डगमगाती हैं, दीवाल पर बनते हुए बिंब डगमगाते हैं, सब चीजें डगमगाती हैं। छाया ठहर जाएगी, अगर ज्योति ठहर जाए। और छाया को ठहराने की कोशिश में मत लग जाना। छाया को कोई नहीं ठहरा सकता। तुम कृपा करके ज्योति को ही ठहराना।
लोग संसार से मुक्त होने में लग जाते हैं। कहते हैं, क्षणभंगुर है, चंचल है, आज है कल नहीं रहेगा। यह सब तुम्हारे भीतर के कारण है। तुम्हारा मन डांवाडोल है। इसलिए सारा संसार डांवाडोल है। तुम ठहरे कि सब ठहरा। तुम ठहरे कि जमाना ठहर गया।
'जो सद्धर्म को नहीं जानता है, जिसकी श्रद्धा डांवाडोल है।'
अब यह बड़े मजे की बात है। बुद्ध कह रहे हैं, जो सद्धर्म को नहीं जानता उसकी ही श्रद्धा डांवाडोल है। सारे धर्मों ने श्रद्धा को पहले रखा है, बुद्ध ने ज्ञान को पहले रखा है। वे कहते हैं, सद्धर्म को जानोगे तो श्रद्धा ठहरेगी। और धर्मों ने कहा है, श्रद्धा करोगे तो सद्धर्म को जानोगे। और धर्मों ने कहा है, मानोगे तो जानोगे। बुद्ध ने कहा है, जानोगे नहीं तो मानोगे कैसे? जानोगे, तो ही मानोगे।
- बुद्ध की बात इस सदी के लिए बहुत काम की हो सकती है। यह सदी बड़ी संदेह से भरी है। इसलिए श्रद्धा की तो बात ही करनी फिजूल है। जो कर सकता है, उससे कहने की कोई जरूरत नहीं। जो नहीं कर सकते, उनसे कहना बार-बार कि श्रद्धा करो, व्यर्थ है। वे नहीं कर सकते, वे क्या करें? तुम श्रद्धा की बात करो तो उस पर भी उन्हें शक आता है। शक आ गया तो आ गया। हटाने का उपाय नहीं। और शक आ चुका है। यह सदी संदेह की सदी है। _ इसलिए बुद्ध का नाम इस सदी में जितना मूल्यवान मालूम होता है, किसी का भी नहीं। उसका कारण यही है। जीसस या कृष्ण बहुत दूर मालूम पड़ते हैं। क्योंकि श्रद्धा से शुरुआत है। श्रद्धा ही नहीं जमती, तो शुरुआत ही नहीं होती। पहला कदम ही नहीं उठता। बुद्ध कहते हैं, श्रद्धा की फिकर छोड़ो, जान लो सद्धर्म को, तथ्य को;
और जानने का उपाय है-थिर हो जाओ। बुद्ध ने यह कहा है कि ध्यान के लिए श्रद्धा आवश्यक नहीं है। ध्यान तो वैज्ञानिक प्रक्रिया है। इसलिए तुम ईश्वर को मानते हो, नहीं मानते हो, कुछ प्रयोजन नहीं। बुद्ध कहते हैं, तुम ध्यान कर सकते हो।
. ध्यान तुम करोगे, तुम भीतर थिर होने लगोगे; उस थिरता के लिए किसी ईश्वर का आकाश में होना आवश्यक ही नहीं है। ईश्वर ने संसार बनाया या नहीं बनाया, इससे उस ध्यान के थिर होने का कोई लेना-देना नहीं है। ध्यान का थिर होना तो वैसे ही है जैसे आक्सीजन और हाइड्रोजन को मिलाओ और पानी बन जाए। तो कोई वैज्ञानिक यह नहीं कहता कि पहले ईश्वर को मानो तब पानी बनेगा। ध्यान तो एक