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________________ एस धम्मो सनंतनो गिर पड़ो तो उठने की क्षमता पैदा करो। भूल हो जाए तो ठीक करने का बोध पैदा करो। लेकिन चलने से मत डर जाना। किनारे उतरकर बैठ मत जाना कि रास्ते पर कांटे भी हैं, भूलें भी हैं, लुटेरे भी हैं-लूट लिए जाएंगे, भटक जाएंगे, इससे तो चलना ही ठीक नहीं। ___ भारत में यही हुआ। बहुत से लोग रास्ते के किनारे उतरकर बैठ गए; भारत मर गया। धार्मिक नहीं हुआ, सिर्फ मुर्दा हो गया। इससे तो पश्चिम के लोग बेहतर हैं। भूलें उन्होंने बहुत की-भूलों से भी क्या डरना! लेकिन जिंदा हैं। और जिंदा हैं तो कभी ठीक भी कर सकते हैं। मुर्दा हो जाना धार्मिक हो जाना नहीं है। धार्मिक हो जाना सोने से कचरे को जला डालना है। लेकिन कचरे के साथ, कचरे के डर से, सोने को फेंक देना नहीं। तो पश्चिम के धार्मिक होने की संभावना है। लेकिन पूरब बिलकुल ही जड़ हो गया है। सत्य के साथ भी हमने सौभाग्य नहीं उपलब्ध किया। सत्य हमें बहुत बार उपलब्ध हुआ, बहुत बुद्धों से हमें उपलब्ध हुआ, लेकिन हमने सत्य के जो अर्थ निकाले उन्होंने हमें संकुचित कर दिया, उन्होंने हमें दायरे बना दिए-मुक्त नहीं किया, असीमा नहीं दी। असीम की हमने बात की उपनिषदों से लेकर आज तक, लेकिन हर चीज ने सीमा दे दी। संयम को नियंत्रण मत समझना। संयम को होश समझना। "जिसका चित्त अस्थिर है, जो सद्धर्म को नहीं जानता है और जिसकी श्रद्धा डांवाडोल है, उसकी प्रज्ञा परिपूर्ण नहीं हो सकती।' अब मुझको है करार तो सबको करार है दिल क्या ठहर गया कि जमाना ठहर गया अब मुझे चैन मिल गई, तो सबको चैन मिल गई। तुम्हारा संसार तुम्हारा ही प्रक्षेपण है। अगर तुम बेचैन हो, तो सारा संसार तुम्हें • चारों तरफ बेचैन मालूम पड़ता है। अगर तुमने शराब पी ली है और तुम्हारे पैर डगमगाते हैं, तो तुम्हें रास्ते के किनारे खड़े मकान भी डगमगाते दिखाई पड़ते हैं। रास्ते पर जो भी तुम्हें दिखाई पड़ता है, वह डगमगाता दिखाई पड़ता है। जिसका चित्त अस्थिर है, वह जिस संसार में जीएगा वह क्षणभंगुर होगा, चंचल होगा। संसार चंचल नहीं है। तुम्हारे मन के डांवाडोल होने के कारण सब डांवाडोल दिखाई पड़ता है। अब मुझको है करार तो सबको करार है दिल क्या ठहर गया कि जमाना ठहर गया तुम ठहरे कि सब ठहर गया। तुम रुके कि सब रुक गया। तुम चले कि सब चल पड़ता है। तुम्हारा संसार तुम्हारा ही फैलाव है। तुम ही हो तुम्हारे संसार। जिसका चित्त अस्थिर है, उसका सब अस्थिर होगा। जब भीतर की ज्योति ही डगमगा रही है 22
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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