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________________ तथाता में है क्रांति पड़ता है जिसके जीवन में संतुलन नहीं है। जिसके जीवन में डर है, कि अगर उसने संतुलन न रखा, नियंत्रण न रखा, तो चीजें हाथ के बाहर हो जाएंगी। जो डरा-डरा जीता है। तुम्हारे साधु-संन्यासी ऐसे ही जी रहे हैं डरे-डरे, कंपे-कंपे. परे वक्त घबड़ाए हुए कि कहीं कोई भूल न हो जाए। यह तो भूल से बहुत ज्यादा संबंध हो गया। यह तो भूल से बड़ा भय हो गया। कहीं भूल न हो जाए। जीवन की दिशा ठीक करने की तरफ होनी चाहिए, भूल से बचने की तरफ नहीं। ध्यान रखना, जो आदमी भूल से ही बच रहा है वह कहीं भी न पहुंच पाएगा। क्योंकि यह जो भूल से बहुत डर गया है, वह चल ही न सकेगा। उसे डर ही लगा रहेगा, कहीं भूल न हो जाए। कहीं ऐसा न हो कि प्रेम में ईर्ष्या पैदा हो जाए तो वह प्रेम ही न करेगा; क्योंकि ईर्ष्या का भय है। किसी से संबंध न बनाएगा कि कहीं संबंध में कहीं शत्रुता न आ जाए। शत्रुता का भय है; तो मित्रता से वंचित रह जाएगा। और अगर तुम शत्रु न भी बनाए और मित्र भी न बना सके, तो तुम्हारा जीवन एक रेगिस्तान होगा। तुम ईर्ष्या से बच गए, लेकिन साथ ही साथ प्रेम भी न कर पाए, तो तुम्हारा जीवन एक सूखा, रसहीन मरुस्थल होगा, जिसमें कोई मरूद्यान भी न होगा, जिसमें छाया की कोई जगह न होगी। ईर्ष्या से बचना है, प्रेम से नहीं बच जाना है। इसलिए ध्यान प्रेम पर रखना। ईर्ष्या से मत डरे रहना, भूल से मत डरना। दुनिया में एक ही भूल है, और वह भूल से डरना है। क्योंकि वैसा आदमी फिर चल ही नहीं पाता, उठ ही नहीं पाता। वह घबड़ाकर बैठ जाता है। तो नियंत्रण तो कर लेता है, लेकिन जीवन के सत्य को उपलब्ध नहीं हो पाता। मुर्दा हो जाता है। महाजीवन को उपलब्ध नहीं होता। संसार से तुम भाग सकते हो, लेकिन वह भागना अगर नियंत्रण का है तो तुम सांसारिक से भी नीचे उतर जाओगे। तुम्हारे जीवन में मरघट की शांति होगी, शिवालय की नहीं। तुम्हारे जीवन में रिक्तता का शून्य होगा, ध्यान का नहीं। * . और खालीपन में और ध्यान में बड़ा फर्क है। मन की अनुपस्थिति में, एबसेन्स ऑफ माइंड में, और मन के अनुपस्थित हो जाने में बड़ा फर्क है। तो अगर तुम पीछे सिकुड़ गए, डर गए, तो यह हो सकता है कि तुम्हारे जीवन में गलतियां न हों, लेकिन ठीक होना भी बंद हो जाएगा। यह बड़ा महंगा सौदा हुआ। गलतियों के पीछे ठीक को गंवा दिया। यह तो ऐसा हुआ, जैसे सोने में कहीं कूड़ा-कर्कट न हो इस डर से सोने को भी फेंक दिया। कूड़ा-कर्कट फेंकना जरूरी है, सोने को शुद्ध करना जरूरी है। लेकिन कूड़े-कर्कट का भय बहुत न समा जाए। ___ संयम का अर्थ है, जीवन संतुलित हो। संतुलन का अर्थ है, जीवन बोधपूर्वक हो, अप्रमाद का हो। तुम एक-एक कदम होशपूर्वक उठाओ, गिरने का डर मत रखो। गिरना भी पड़े तो घबड़ाने की बात नहीं है। सम्हलने की क्षमता पैदा करो। 21.
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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