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________________ तथाता में है क्रांति 'दमन किया हुआ चित्त सुखदायक होता है।' वह लक्षण है। जिसको फ्रायड दमन कहता है, वह चित्त तो बड़ा दुखदायी हो जाता है, वह तो बड़े ही दुख से भर जाता है। 'दमन किया हुआ चित्त सुखदायक होता है।' तो ध्यान रखना, फ्रायड के अर्थों में दमन से बचना और बुद्ध के अर्थों में दमन को करना । क्रोध उठे तो तुम्हारे भीतर एक ऊर्जा उठी है, उसका कुछ उपयोग करो अन्यथा वह घातक हो जाएगी। अगर तुम दूसरे के ऊपर क्रोध को फेंकोगे तो दूसरे को नुकसान होगा; और क्रोध और क्रोध लाता है । वैर से वैर मिटता नहीं । उसका कोई अंत नहीं है। वह सिलसिला अंतहीन है। अगर तुम क्रोध को भीतर दबाओगे तो तुम्हारे भीतर घाव हो जाएगा, वह घाव भी खतरनाक है। वह तुम्हें रुग्ण कर देगा। तुम्हारे जीवन की खुशी खो जाएगी। तो न तो दूसरे पर क्रोध फेंको, न अपने भीतर क्रोध को दबाओ, क्रोध को रूपांतरित करो। घृणा उठे, क्रोध उठे, ईर्ष्या उठे, इन शक्तियों का सदुपयोग करो । मार्ग के पत्थर भी, बुद्धिमान व्यक्ति मार्ग की सीढ़ियां बना लेते हैं । और तब तुम बड़े सुख को उपलब्ध होओगे। दो कारण से । एक तो क्रोध करके जो दुख उत्पन्न होता, वह नहीं होगा। क्योंकि तुमने किसी को गाली दे दी इससे कुछ सिलसिला अंत नहीं हो गया । वह दूसरा आदमी फिर गाली देने की प्रतीक्षा करेगा। अब उसके ऊपर क्रोध घिरा है, वह भी तो क्रोध करेगा। अगर तुमने क्रोध को दबा लिया तो तुम्हारे भीतर के स्रोत विषाक्त हो जाते हैं। क्रोध जहर है। तुम्हारे जीवन का सुख धीरे-धीरे समाप्त हो जाता है। तुम फिर प्रसन्न नहीं हो सकते। प्रसन्नता खो ही जाती है। तुम हंसोगे भी तो झूठ । ओंठों पर रहेगी हंसी; तुम्हारे प्राण तक उसका कंपन न पहुंचेगा। तुम्हारे हृदय से न उठेगी। तुम्हारी आंखें कुछ और कहेंगी, तुम्हारे ओंठ कुछ और कहेंगे। तुम धीरे-धीरे टुकड़े-टुकड़े में टूट जाओगे । तो न तो दूसरे पर क्रोध करने से तुम सुखी हो सकते हो, क्योंकि कोई दूसरे को दुखी करके कब सुखी हो पाया ! और न तुम अपने भीतर क्रोध को दबाकर सुखी हो सकते हो, क्योंकि वह क्रोध उबलने के लिए तैयार होगा, इकट्ठा होगा । और रोज-रोज तुम क्रोध को इकट्ठा करते चले जाओगे, भीतर भयंकर उत्पात हो जाएगा। किसी भी दिन तुमसे पागलपन प्रगट हो सकता है। किसी भी दिन तुम विक्षिप्त हो सकते हो। एक सीमा तक तुम बैठे रहोगे अपने ज्वालामुखी पर, लेकिन विस्फोट किसी न किसी दिन होगा। दोनों ही खतरनाक हैं। रूपांतरण चाहिए। क्रोध की ऊर्जा को विधेय में लगा दो । कुछ न करते बन सके, दौड़ आओ। क्रोध उठा है, नाच लो। तुम थोड़ा प्रयोग करके देखो। जब क्रोध उठे तो नाचकर देखो। जब क्रोध उठे तो एक गीत गाकर देखो। जब क्रोध उठे तो घूमने निकल जाओ । जब क्रोध उठे तो किसी काम में लग जाओ, खाली मत बैठो। 19
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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