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एस धम्मो सनंतनो
होती है। इसलिए बुद्ध कहते हैं, अप्रमाद में प्रमुदित होओ। दुख में घटती है। शांति में थिर रहती है। आनंद में बढ़ती है। और जब भी तुम कोई नकारात्मक, निषेधात्मक भाव में उलझते हो तब तुम्हारी ऊर्जा व्यर्थ जा रही है। तुममें छेद हो जाते हैं। जैसे घड़े में छेद हों और तुम उसमें पानी भरकर रख रहे हो; वह बहा जा रहा है!
बुद्ध या पतंजलि जब कहते हैं दमन-चित्त का दमन-तो वे यह नहीं कहते हैं कि चित्त में क्रोध को दबाना है। वे यह कहते हैं कि चित्त में जिन छिद्रों से ऊर्जा बहती है उन छिद्रों को बंद करना है। और जो ऊर्जा क्रोध में संलग्न होती है, उस ऊर्जा को जीवन की विधायक दिशाओं में संलग्न करना है।
इसे कभी खयाल कर के देखो। तुम्हारे मन में क्रोध उठा है। किसी ने गाली दे दी, या किसी ने अपमान कर दिया, या घर में किसी ने तुम्हारी कोई बहुमूल्य चीज तोड़ दी और तुम क्रोधित हो गए हो। एक काम करो। जाकर, घर के बाहर बगीचे में कुदाली लेकर एक दो फिट का गड्डा खोद डालो। और तुम बड़े हैरान होओगे कि गड्डा खोदते-खोदते क्रोध तिरोहित हो गया। क्या हुआ? जो क्रोध तुम्हारे हाथों में आ गया था, जो किसी को मारने को उत्सुक हो गया था, वह ऊर्जा उपयोग कर ली गई। या घर के दौड़कर तीन चक्कर लगा आओ। और तुम पाओगे कि लौटकर तुम हल्के हो गए। वह जो क्रोध उठा था, जा चुका।
यह तो क्रोध का रूपांतरण हुआ। इसको ही बुद्ध और महावीर और पतंजलि ने दमन कहा है। फ्रायड ने दमन कहा है-तुम्हारे भीतर क्रोध उठा, उसको भीतर दबा लो, प्रगट मत करो। तो खतरनाक है। तो बहुत खतरनाक है। उससे तो बेहतर है तुम प्रगट कर दो। क्योंकि क्रोध अगर भीतर रह जाएगा, नासूर बनेगा। नासूर अगर सम्हालते रहे, सम्हालते रहे, सेते रहे, तो आज नहीं कल कैंसर हो जाएगा।
जितनी मनुष्यता सभ्य होती चली जाती है, उतनी खतरनाक बीमारियों का फैलाव बढ़ता जाता है। कैंसर बड़ी नई बीमारी है। वह बहुत सभ्य आदमी को ही हो सकती है। जंगलों में रहने वाले लोगों को नहीं होती। आयुर्वेद में तो कुछ रोगों को राजरोग कहा गया है-वे सिर्फ राजाओं को ही होते थे। क्षयरोग को राजरोग कहा है। वह हर किसी को नहीं होता था। उसके लिए बहुत सभ्यता का तल चाहिए, बहुत सुसंस्कारित जीवन चाहिए, जहां तुम अपने भावावेशों को सुगमता से प्रगट न कर सको, जहां तुम्हें झूठे भाव प्रगट करने पड़ें; जहां रोने की हालत हो वहां मुस्कुराना पड़े, और जहां गर्दन मिटा देने की, तोड़ देने की इच्छा हो रही थी, वहां धन्यवाद देना पड़े। तो तुम्हारे भीतर ये दबे हुए भाव धीरे-धीरे घाव बन जाएंगे।
फ्रायड का कहना बिलकुल सच है कि दमन खतरनाक है। लेकिन बुद्ध, महावीर और पतंजलि जिसकों दमन कहते हैं, वह खतरनाक नहीं है। वे किसी और ही बात को दमन कहते हैं। वे कहते हैं दमन रूपांतरण को। निषेध को विधेयक में बदल देने को वे दमन कहते हैं। और उसी मन को वे कहते हैं सुख उपलब्ध होगा।
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