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तथाता में है क्रांति
सुलगना और जीना यह कोई जीने में जीना है लगा दे आग अपने दिल में दीवाने धुआं कब तक
यह जो होने की आकांक्षा है, इससे आग नहीं पैदा होती, सिर्फ धुआं ही धुआं पैदा होता है। बुद्ध का वचन है कि वासना से भरा चित्त गीली लकड़ी की भांति है। उसमें आग लगाओ तो लपट नहीं निकलती, धुआं ही धुआं निकलता है । लकड़ी
सूखी होती है तब उससे लपट निकलती है। जब तक वासना है तुम्हारी समझ में, तुम्हारे जीवन में आग न होगी । तुम्हारे जीवन में रोशनी और प्रकाश न होगा । धुआं ही धुआं होगा। अपने ही धुएं से तुम्हारी आंखें खराब हुई जा रही हैं। अपने ही धुएं से तुम देखने में असमर्थ हुए जा रहे हो, अंधे हुए जा रहे हो। अपने ही धुएं से तुम्हारी आंखें आंसुओं से भरी हैं, और जीवन का सत्य तुम्हें दिखाई नहीं पड़ता है। सुलगना और जीना यह कोई जीने में जीना है
लगा दे आग अपने दिल में दीवाने धुआं कब तक
लेकिन धुआं तब तक उठेगा ही जब तक कोई भी वासना का गीलापन तुम में रह गया है। लकड़ी जब तक गीली है, धुआं उठेगा । लकड़ी से धुआं नहीं उठता। गीलेपन से धुआं उठता है। लकड़ी में छिपे जल से धुआं उठता है। तुमसे धुआं नहीं उठ रहा है। तुम्हारे भीतर जो वासना की आर्द्रता है, गीलापन है, उससे धुआं उठ रहा है।
त्यागी बुद्ध ने उसको कहा है जो सूखी लकड़ी की भांति है। जिसने वासना का सारा खयाल छोड़ दिया ।
'जिसका निग्रह करना बहुत कठिन है और जो बहुत तरल है, हल्के स्वभाव का है और जो जहां चाहे वहां झट चला जाता है, ऐसे चित्त का दमन करना श्रेष्ठ है। दमन किया हुआ चित्त सुखदायक होता है।'
दमन शब्द को ठीक से समझ लेना । उस दिन इसके अर्थ बहुत अलग थे जब बुद्ध ने इसका उपयोग किया था। अब अर्थ बहुत अलग हैं । फ्रायड के बाद दमन शब्द के अर्थ बिलकुल दूसरे हो गए हैं। भाषा वही नहीं रह जाती रोज बदल जाती है। भाषा तो प्रयोग पर निर्भर करती है।
बुद्ध के समय में, पतंजलि के समय में दमन का अर्थ बड़ा और था। दमन का अर्थ था, मन में, जीवन में, तुम्हारे अंतर्तम में, अगर तुम क्रोध कर रहे हो या तुम अशांत हो, बेचैन हो, तो तुम एक विशिष्ट मात्रा की ऊर्जा नष्ट कर रहे हो । स्वभावतः जब तुम क्रोध करोगे, थकोगे; क्योंकि ऊर्जा नष्ट होगी; जब तुम कामवासना से भरोगे, तब भी ऊर्जा नष्ट होगी। जब तुम उदास होओगे, दुखी होओगे, तब भी ऊर्जा नष्ट होगी।
एक बड़ी हैरानी की बात है कि सिर्फ शांति के क्षणों में ऊर्जा नष्ट नहीं होती, और आनंद के क्षणों में ऊर्जा बढ़ती है। नष्ट होना तो दूर, विकसित होती है। प्रमुदित
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