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एस धम्मो सनंतनो
है। जमीन पर हैं तो स्वर्ग में होना है। संसार में हैं तो मोक्ष में होना है। कुछ होना है। बिकमिंग। 'है' से संबंध नहीं है, होने से संबंध है। __ होना ही मार है। होना ही शैतान है। और होने के तट पर मछली जैसा तुम तड़फड़ाते हो। लेकिन तट छोड़ते नहीं। जितने तड़फड़ाते हो उतना सोचते हो, तड़फड़ाहट इसीलिए है कि अब तक हो नहीं पाया; जब हो जाऊंगा, तड़फड़ाहट मिट जाएगी। और दौड़ में लगते हो। तर्क की भ्रांति तुम्हें और तट की तरफ सरकाए ले जाती है। जब कि पास ही सागर है तथ्य का। उसमें उतरते ही मछली राजी हो जाती। उसमें उतरते ही मछली की सब बेचैनी खो जाती। इतने ही करीब, जैसे तट पर तड़फती मछली है, उससे भी ज्यादा करीब तुम्हारा सागर है।
"जिस प्रकार जलाशय से निकालकर जमीन पर फेंक दी गई मछली तड़फड़ाती है, उसी प्रकार यह चित्त मार के फंदे से निकलने के लिए तड़फड़ाता है।'
लेकिन हर तड़फड़ाहट इसे फंदे में उलझाए चली जाती है। क्योंकि तड़फड़ाहट में भी यह मार की भाषा का ही उपयोग करता है, समझ का नहीं। वहां भी वासना का ही उपयोग करता है। दुकान पर बैठे लोग दुखी हैं—जो पाना था नहीं मिला। मंदिर में बैठे लोग दुखी हैं—जो पाना था नहीं मिला।
जीसस के जीवन में उल्लेख है, वे एक गांव से गुजरे। उन्होंने कुछ लोगों को छाती पीटते, रोते देखा। पूछा कि क्या मामला है? किसलिए रो रहे हो? कौन सी दुर्घटना घट गई? उन्होंने कहा, कोई दुर्घटना नहीं घटी, हम नर्क के भय से घबड़ा
कहां है नर्क? मगर मन ने नर्क के भय खड़े कर दिए हैं, उनसे घबड़ा रहे हैं।
जीसस थोड़े आगे गए, उन्होंने कुछ और लोग देखे जो बड़े उदास बैठे थे, जैसा मंदिरों में लोग बैठे रहते हैं। बड़े गंभीर। जीसस ने पूछा, क्या हुआ तुम्हें? कौन सी मुसीबत आई? कितने लंबे चेहरे बना लिए हैं? क्या हो गया? उन्होंने कहा, कुछ भी नहीं, हम स्वर्ग की चिंता में चिंतातुर हैं-स्वर्ग मिलेगा या नहीं? ___ जीसस और आगे बढ़े। उन्हें एक वृक्ष के नीचे कुछ लोग बड़े प्रमुदित, बड़े शांत, बड़े आनंदित बैठे मिले। उन्होंने कहा, तुम्हारे जीवन में कौन सी रसधार आ गई? तुम इतने शांत, इतने प्रसन्न, इतने प्रफुल्लित क्यों हो? उन्होंने कहा, हमने स्वर्ग
और नर्क का खयाल छोड़ दिया। __स्वर्ग है सुख, जो तुम पाना चाहते हो। नर्क है दुख, जिससे तुम बचना चाहते हो। दोनों भविष्य हैं। दोनों कामना में हैं। दोनों मार के फंदे हैं। जब तुम दोनों को ही छोड़ देते हो, अभी और यहीं जिसे मोक्ष कहो, निर्वाण कहो, वह उपलब्ध हो जाता है।
निर्वाण तुम्हारा स्वभाव है। तुम जो हो उसमें ही तुम उसे पाओगे। होने की दौड़ में तुम उससे चूकते चले जाओगे।