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________________ तथाता में है क्रांति को नहीं मिला, तुम्हें कैसे मिलेगा? तलाश तो भटकने का उपाय है, पहुंचने का नहीं। उस दिन वे थक गए तलाश से भी, मोक्ष भी व्यर्थ मालूम पड़ा। संसार तो व्यर्थ था, आज मोक्ष भी व्यर्थ हो गया। उन्होंने सांझ, जिस वृक्ष के नीचे थोड़ी देर बाद वे बुद्धत्व को उपलब्ध हुए, अपना सिर टेक दिया और उन्होंने कहा, अब कुछ पाना नहीं है। मार उपस्थित हुआ, उसने कहा, इतनी जल्दी आशा मत छोड़ो। अभी बहुत कुछ किया जा सकता है। अभी तुमने सब नहीं कर लिया है। अभी बहुत साधन शेष हैं। मैं तुम्हें बताता हूं। लेकिन बुद्ध ने उसकी एक न सुनी। वे लेटे ही रहे। वे विश्राम में ही रहे। मार उन्हें पुनः न खींच पाया दौड़ में। मार ने सब तरह से चेष्टा की कि अभी मोक्ष को पाने का यह उपाय हो सकता है। सत्य को पाने का यह उपाय हो सकता है। वे उपेक्षा से देखते रहे। जीसस ने तो इतना भी कहा था शैतान से, हट पीछे, बुद्ध ने उतना भी न कहा। क्योंकि हट पीछे में भी जीसस थोड़े तो हार गए। बुद्ध ने इतना भी न कहा। बौद्धशास्त्र कहते हैं, बुद्ध सुनते रहे उपेक्षा से। इतना भी रस न लिया कि इनकार भी करें। इनकार में भी रस तो होता ही है। स्वीकार भी रस है, इनकार भी रस है। बुद्ध ने जीसस से भी बड़ी प्रौढ़ता का प्रदर्शन किया। उससे भी बड़ी प्रौढ़ता का सबूत दिया। बुद्ध सुनते रहे। मार थोड़ी-बहुत देर चेष्टा किया, बड़ा उदास हुआ। यह आदमी कुछ बोलता ही नहीं। यह इतना भी नहीं कहता कि हट यहां से, मुझे डुबाने की कोशिश मत कर। अब मुझे और मत भटका। इतना भी बुद्ध कहते तो भी थोड़ा चेष्टा करने की जरूरत थी। लेकिन इतना भी न कहा। कहते हैं, मार उस रात विदा हो गया। इस आदमी से सब संबंध छूट गए। यही घड़ी है समाधि की। जब तुम मन के विपरीत भी नहीं। जब तुम मन से यह भी नहीं कहते, तू जा। तुम मन से यह भी नहीं कहते कि अब बंद भी हो, अब विचार न कर, अब मुझे शांत होने दे, इतना भी नहीं कहते, तभी तुम शांत हो जाते हो। क्योंकि मन फिर तुम्हारे ऊपर कोई कब्जा नहीं रख सकता। इतना भी बल मन को न रहा कि वह तुम्हें अशांत कर सके। इतना भी बल मन का न रहा कि वह तुम्हारे ध्यान में बाधा डाल सके। तुम मन के पार हो गए। उसी रात, सुबह भोर के तारे के साथ, आखिरी तारा डूबता था और बुद्ध परम प्रज्ञा को उपलब्ध हुए। जिस प्रकार जलाशय से निकालकर जमीन पर फेंक दी गई मछली तड़फड़ाती है, ऐसे ही तुम तड़फड़ा रहे हो, चित्त तड़फड़ा रहा है। क्योंकि तथ्य और सत्य के जलाशय के बाहर आशा के तट पर पड़े हो। कुछ होना है, ऐसा भूत सवार है। जो हो, उसके अतिरिक्त हो कैसे सकोगे कुछ? जो हो, वही हो सकते हो। उसके बाहर, उसके पार कुछ भी नहीं है। लेकिन मन पर एक भूत सवार है, कुछ होना है। गरीब हैं तो अमीर होना है। बीमार हैं तो स्वस्थ होना है। शरीरधारी हैं तो अशरीरधारी होना 15
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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