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________________ एस धम्मो सनंतनो दूर हट जाता है। क्योंकि चाह से तथ्य का कोई संबंध कैसे जुड़ेगा? तथ्य तो है। और चाह कहती है, होना चाहिए। इन दोनों में कहीं मेल नहीं होता। बुद्ध का शास्त्र है कि तुम तथ्य को देखो। और जो है, उससे रत्तीभर यहां-वहां हटने की कोशिश मत करना। यही कृष्णमूर्ति का पूरा सार-संचय है, कि तुम जो हो उससे रत्तीभर यहां-वहां हटने की कोशिश मत करना। हो, वही हो। उससे भिन्न जाने की चेष्टा की कि भटके। उससे विपरीत जाने की चेष्टा की कि फिर तो तुमने अनंत दूरी पर कर दी मंजिल। स्वीकार में, तथाता में क्रांति है। 'जिस प्रकार जलाशय से निकालकर जमीन पर फेंक दी गई मछली तड़फड़ाती है, उसी प्रकार यह चित्त मार के फंदे से निकलने के लिए तड़फड़ाता है।' __ यह उनकी उस दिन की भाषा है। इसको आज की भाषा में रखना पड़ेगा। 'जिस प्रकार जलाशय से निकालकर जमीन पर फेंक दी गई मछली तड़फड़ाती जलाशय यानी तथ्य, जो है। जो मछली का जीवन है, उससे निकालकर उसे तट पर फेंक दिया। ___ और जैसे मछली तड़फड़ाती है, उसी प्रकार यह चित्त मार के फंदे से निकलने के लिए तड़फड़ाता है।' मार का फंदा क्या है? आकांक्षा का। मार का फंदा क्या है? आशा का। मार का फंदा क्या है? कुछ होने की आकांक्षा और दौड़। जीसस के जीवन में उल्लेख है कि जब चालीस दिन के ध्यान के बाद वे परम स्थिति के करीब पहुंचने लगे, तो शैतान प्रगट हुआ। वह शैतान कोई और नहीं है, वह तुम्हारा मन है। जो मरते वक्त ऐसे ही भभककर जलता है जैसे बुझते वक्त दिया आखिरी लपट लेता है। मन का अर्थ है, वही जो अब तक तुमसे कहता था, कुछ होना है...कुछ होना है...।जो तुम्हें दौड़ाए रखता था। ध्यान की आखिरी घड़ी आने लगी जीसस की, मन मौजूद हुआ। जीसस की भाषा में शैतान, बुद्ध की भाषा में मार। मन ने कहा, तुम्हें जो बनना हो मैं बना दूं। जीसस से कहा, तुम्हें जो बनना हो मैं बना दूं। सारे संसार का सम्राट बना दूं। तीनों लोकों का सम्राट बना दूं। तुम बोलो, तुम्हें जो बनना हो मैं तुम्हें बना दूं। जीसस मुस्कुराए और उन्होंने कहा, तू पीछे हट। शैतान, पीछे हट! क्या मतलब है जीसस का? जीसस यह कह रहे हैं, अब तू और चकमे मत दे बनाने के, बनने के। अब तो जो मैं हूं, पर्याप्त है। तू पीछे हट। तू मुझे राह दे। बुद्ध जब परम घड़ी के करीब पहुंचने लगे तो वही घटना है। मार मौजूद हुआ। मार यानी मन। और मन ने कहा, अभी मत छोड़ो आशा। क्योंकि उस सांझ...बुद्ध संसार से तो छः साल पहले मुक्त हो गए थे, छः साल से वे मोक्ष की तलाश में लगे थे, और छः साल में थक गए। क्योंकि तलाश से कभी कुछ मिला ही नहीं है। बद्ध
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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