________________
तथाता में है क्रांति
अहिंसक दिखने की, लेकिन हिंसक ही रहेगा। और पहले कम से कम हिंसा दिखाई पड़ती थी, अहिंसा में अगर ढक गई तो फिर कभी भी दिखाई न पड़ेगी। कामवासना से भरा हुआ आदमी, वह कहता है, ब्रह्मचर्य साधना है। तुम अपने विपरीत जाने की चेष्टा करोगे, जटिल हो जाओगे।
बुद्ध क्या कहते हैं? बुद्ध कहते हैं, क्रोधी हो तो क्रोध के तथ्य को जानो, अक्रोधी होने की चेष्टा मत करना। क्रोधी हो, क्रोध को स्वीकार करो। कह दो सारे जगत को कि मैं क्रोधी हूं। और उसे छिपाए मत फिरो, क्योंकि छिपाने से कहीं रोग मिटा है! खोल दो उसे, शायद बह जाए। शायद नहीं, बह ही जाता है। अगर हिंसक हो तो स्वीकार कर लो कि मैं हिंसक हूं। और अपने हिंसक होने की दीनता को
अस्वीकार मत करो। कहीं अहिंसक होने की चेष्टा में यही तो नहीं कर रहे हो कि हिंसक होने को कैसे स्वीकार करें, तो अहिंसा से ढांक लें। घाव है तो फूल ऊपर से चिपका दें, गंदगी है तो इत्र छिड़क दें, कहीं ऐसा तो नहीं है? ऐसा ही है।
इसलिए तुम पाओगे कि कामुक ब्रह्मचारी हो जाते हैं। और उनके ब्रह्मचर्य से सिवाय कामवासना की दुर्गंध के कुछ भी नहीं उठता। क्रोधी शांत होकर बैठने लगते हैं। लेकिन उनकी शांति में तुम पाओगे कि ज्वालामुखी उबल रहा है क्रोध का। संसारी संन्यासी हो जाते हैं और उनके संन्यास में सिवाय संसार के और कुछ भी नहीं है। मगर तुम भी धोखे में आ जाते हो। क्योंकि ऊपर से वे वेश बदल लेते हैं। ऊपर से उलटा कर लेते हैं। भीतर लोभ है, ऊपर से दान करने लगते हैं। __लेकिन ध्यान रखना, लोभी जब दान करता है तब भी लोभ के लिए ही करता है। होगा लोभ परलोक का कि स्वर्ग में भंजा लेंगे। लिख दी हुंडी। हुंडियां निकाल रहा है। वह स्वर्ग में भंजाएगा। वह सोच रहा है, क्या-क्या स्वर्ग में पाना है इसके बदले में? और ऐसे लोभियों को धर्म में उत्सुक करने के लिए पंडित और पुरोहित मिल जाते हैं। वे कहते हैं, यहां एक दोगे, करोड़ गुना पाओगे। थोड़ा हिसाब भी तो रखो। सौदा कर रहे हो? यह सौदा भी बिलकुल बेईमानी का है। गंगा के किनारे पंडे बैठे हैं, वे कहते हैं, एक पैसा यहां दान दो, करोड़ गुना पाओगे। यह कोई सौदा हुआ? यह तो जुए से भी ज्यादा झूठा मालूम पड़ता है। एक पैसा देने से कैसे करोड़ गुना पाओगे? करोड़ गुने की आशा दी जा रही है, क्योंकि तुमसे एक पैसा भी छूटेगा नहीं सिवाय इसके। तुम्हारे लोभ को उकसाया जा रहा है। लोभी दान करता है, मंदिर बनवाता है, धर्मशाला बनवाता है। लेकिन यह सब लोभ का ही फैलाव है। ___ दान तो तभी संभव है जब लोभ मिट जाए। लोभ के रहते दान कैसे संभव है? ब्रह्मचर्य तो तभी संभव है जब वासना खो जाए। वासना के रहते ब्रह्मचर्य कैसे संभव है? ध्यान तो तभी संभव है जब मन चला जाए। मन के रहते ध्यान कैसे संभव है? अगर मन के रहते ध्यान करोगे, तो मन से ही ध्यान करोगे। मन का ध्यान कैसे ध्यान होगा? मन का अभाव ध्यान है।
11