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एस धम्मो सनंतनो
इसलिए बुद्ध ने एक अभिनव-शास्त्र जगत को दिया–सिर्फ जागकर तथ्यों को देखने का। बुद्ध ने नहीं सिखाया कि तुम विपरीत करने लगो। बुद्ध ने इतना ही सिखाया कि तुम जो हो उसे सरल कर लो, सीधा कर लो। उसके सीधे होने में ही हल है। तुम क्रोधी हो, क्रोध को जानो; छिपाओ मत। ढांको मत, मुस्कुराओ मत। ___जीवन को झूठ से छिपाओ मत, प्रगट करो। और तुम चकित हो जाओगे! अगर तुम अपने क्रोध को स्वीकार कर लो, अपनी घृणा को, ईर्ष्या को, द्वेष को, जलन को स्वीकार कर लो, तुम सरल होने लगोगे। तुम पाओगे, एक साधुता उतरने लगी। अहंकार अपने आप गिरने लगा। क्योंकि अहंकार तभी तक रह सकता है जब तक तुम धोखा दो। अहंकार धोखे का सार है। या सब धोखों का निचोड़ है। जितने तुमने धोखे दिए उतना ही बड़ा अहंकार है। क्योंकि तुमने बड़ी चालबाजी की, और तुमने दुनिया को धोखे में डाल दिया, तुम बड़े अकड़े हुए हो। लेकिन तुम उघाड़ दो सब।
जिसको जीसस ने कन्फेशन कहा है-स्वीकार कर लो। और जीसस ने जिसको कहा है कि जिसने स्वीकार कर लिया वह मुक्त हो गया, उसको ही बुद्ध ने कहा है-बुद्ध कन्फेशन शब्द का उपयोग नहीं कर सकते। क्योंकि परमात्मा की कोई जगह नहीं है बुद्ध के विचार में। किसके सामने करना है स्वीकार? अपने ही सामने स्वीकार कर लेना है। तथ्य की स्वीकृति में तथ्य से मुक्ति है। तथ्य की स्वीकृति में तथ्य के पार जाना है।
इस बहुमूल्य सूत्र का थोड़ा सा जीवन में उपयोग करोगे, तुम चकित हो जाओगे; तुम्हारे हाथ में कीमिया लग गई, एक कुंजी लग गई। तुम जो हो उसे स्वीकार कर लो। चोर हो चोर। झूठे हो झूठे। बेईमान हो बेईमान। क्या करोगे तुम? उस स्वीकृति में तुम पाआगे कि अचानक तुम जो थे वह बदलने लगा। वह नहीं बदलता था, क्योंकि तुम छिपाते थे। जैसे घाव को खोल दो खुली रोशनी में, सूरज की किरणें पड़ें, ताजी हवाएं छुएं, घाव भरने लगता है। ऐसे ही ये भीतर के घाव हैं। इन्हें तुम जगत के सामने खोल दो, ये भरने लगते हैं।
इस स्थिति को बुद्ध कहते हैं—मेधावी पुरुष, बुद्धिमान व्यक्ति, जिसको थोड़ी भी अकल है। बाकी ये जो उलटे काम कर रहे हैं—क्रोधी अक्रोधी बनने की, हिंसक अहिंसक बनने की—ये मूढ़ हैं। ये मेधावी नहीं हैं। ये समय गंवा रहे हैं। ये कभी कुछ न बन पाएंगे। ये मूल ही चूक गए। यह पहले कदम पर ही भूल हो गई।
'मेधावी पुरुष उसी प्रकार ऋजु, सरल, सीधा बना लेता है अपने चित्त को, जिस प्रकार बाणकर वाण को।' __जिसकी तुम आकांक्षा करोगे, उससे ही तुम वंचित रहोगे। एस धम्मो सनंतनो। जिसको तुम स्वीकार कर लोगे, उससे ही तुम मुक्त हो जाओगे। जिसको तुम मांगोगे नहीं, वह तुम्हारे पीछे आने लगता है। और जिसको तुम मांगते हो, वह दूर हटता चला जाता है। तुम्हारी मांग हटाती है दूर।
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