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________________ एस धम्मो सनंतनो तू उसे करने दे । पहले शराब जीस्त थी अब जीस्त है शराब कोई पिला रहा है पिए जा रहा हूं मैं बुद्ध कहते हैं, जान लिया, समझ लिया, हो गया । करने की बात ही नासमझी से उठती है। क्योंकि तुम बोध हो, चैतन्य हो । चित्त क्षणिक है, चंचल है, यह कोई सिद्धांत नहीं, यह केवल सत्य की उदघोषणा है । इसे सुनो, कुछ करना नहीं है। इसे पहचानो, कुछ साधना नहीं है। 'चित्त क्षणिक है, चंचल है। इसे रोक रखना कठिन है। इसका निवारण कठिन है। ऐसे चित्त को मेधावी पुरुष उसी प्रकार ऋजु, सरल, सीधा बनाता है जिस प्रकार वाणकार वाण को ।' अगर वाण तिरछा हो, आड़ा हो, तो निशाने पर नहीं पहुंचता। सीधा चाहिए, ऋजु चाहिए, सरल चाहिए, फिर पहुंच जाता है । तुम्हारा मन तिरछा है या सीधा ? तुम्हारा मन जटिल है या सरल ? तुम्हारा मन तुम्हारा मन है। तुम वाणकार हो, तुम्हारा मन तुम्हारे हाथ का वाण है। लेकिन तुमने कभी खयाल किया कि तुम उसे जटिल किए चले जाते हो, तुम उसे उलझाए चले जाते हो । सीधे-सरल का क्या अर्थ है ? सीधे - सरल का अर्थ है, जैसा मन हो उसे वैसा ही देख लेना । तत्क्षण मन सरल हो जाता है। यही है मन का दर्शन । कहो ध्यान, कहो अप्रमाद; या कोई और नाम दो। मन को, उसको जैसा है वैसा ही देख लेने से तत्क्षण सरल हो जाता है। 1 समझो कि तुम चोर हो, या झूठ बोलने वाले हो । अब एक झूठ बोलने वाला आदमी है, वह मेरे पास आता है, वह कहता है कि मुझे सत्य बोलने की कला सिखा दें। ऐसे ही उलझा है, झूठ से उलझा है, अब एक और सत्य की झंझट भी चाहता है। अब झूठ बोलने वाले आदमी को सच बोलने की कला कैसे सिखाई जाए? क्योंकि उस कला को सीखने में भी वह झूठ बोलेगा। एक क्रोधी आदमी है, वह कहता है, मुझे अक्रोध सीखना है। अब क्रोधी आदमी को अक्रोध कैसे सिखाया जाए? अगर उससे कहो घर में शांत होकर बैठ जाना, तो वह बैठेगा कैसे ? क्रोध ही उबलेगा । और अक्सर ऐसे क्रोधी अगर पूजा-पाठ, प्रार्थना करने लगते हैं, तो घरभर की मुसीबत आ जाती है। इससे तो बेहतर था कि वे नहीं करते थे। क्योंकि बच्चा अगर जरा शोरगुल कर दे तो उनका क्रोध उबल पड़ता है, कि ध्यान में बाधा पड़ गई। या अगर पत्नी के हाथ से बर्तन गिर जाए तो उनका धर्म, ध्यान नष्ट हो गया । क्रोध उनका जाएगा कैसे ? वे ध्यान के आधार पर भी क्रोध करेंगे। हिंसक है कोई, पूछता है, अहिंसक होना है। हिंसक चित्त कैसे अहिंसक होगा ? वैसे ही जटिल था, अहिंसा और उपद्रव खड़ा कर देगी। तो वह तरकीबें खोज लेगा 10
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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