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एस धम्मो सनंतनो
बस एक छोटी सी बात कि अहंकार न रह जाए।
अगर इंसान अपने आप से बेगाना हो जाए जरा अपने से दूर हो जाए, जरा अपने को छोड़ दे, यह अपना होना जरा मिटा दे...।
अभी मयखाना-ए-दीदार हर जर्रे में खुलता है फिर तो हर कण-कण में परमात्मा की मधुशाला खुल जाती है। फिर तो कण-कण में उसी की मधुशाला खुल जाती है। फिर तो सभी तरफ उसी का प्रसाद उपलब्ध होने लगता है। बस जरा सी तरकीब है, तुम जरा हट जाओ। तुम्हारे और परमात्मा के बीच में तुम्हारे सिवाय और कोई भी नहीं।
तीसरा प्रश्न
इस प्रवचनमाला में आपने कई बार कहा है, एस धम्मो सनंतनो, यही सनातन धर्म है। और आश्चर्य तो यह है कि वह हर बार नये रूप में आपके द्वारा प्रगट हुआ है। क्या सनातन धर्म एक है या अनेक?
धर्म तो एक है, लेकिन उसके प्रतिबिंब अनेक हो सकते हैं। रात पूरा चांद
निकलता है। सागरों में भी झलकता है, सरोवरों में भी झलकता है, छोटे-छोटे डबरों में भी झलकता है-प्रतिबिंब बहुत हैं। ___ सागर में बताकर भी मैंने तुमसे कहा, एस धम्मो सनंतनो। छोटे सरोवर में भी बताकर कहा, एस धम्मो सनंतनो। राह के किनारे वर्षा में भर गये डबरे में भी बताकर कहा, एस धम्मो सनंतनो। मैंने बहुत बार कहा। बहुत रूप में कहा। लेकिन वे सब प्रतिबिंब हैं और जो चांद है, वह तो कहा नहीं जा सकता। इसलिए तुम और उलझन में पड़ोगे। ____ मैंने जब भी कहा, एस धम्मो सनंतनो, यही सनातन धर्म है, तभी प्रतिबिंब की बात कही है। प्रतिबिंब में मत उलझ जाना। इशारा किया। इशारे को मत पकड़ लेना। और जो है ऊपर, वह जो चांद है असली, उसकी तरफ कोई इशारा नहीं किया जा सकता। अंगुलियां वहां छोटी पड़ जाती हैं। शब्द वहां काफी सिद्ध नहीं होते। और फिर उस चांद को देखना हो तो तुम्हें गर्दन बड़ी ऊंची उठानी पड़ेगी। और तुम्हारी आदत जमीन में देखने की हो गई है। तो तुम्हें प्रतिबिंब ही बताए जा सकते हैं।
लेकिन अगर प्रतिबिंब कहीं तुम्हारे जीवन का आकर्षण बन जाए, कहीं प्रतिबिंब का चुंबक तुम्हें खींच ले, तो शायद आज नहीं कल तुम असली की तलाश में भी
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