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प्रेम की आखिरी मंजिल : बुद्धों से प्रेम निकल जाओ। क्योंकि प्रतिबिंब तो खो-खो जाएगा। जरा हवा का झोंका आएगा, झील कंप जाएगी और चांद टूटकर बिखर जाएगा। तो आज नहीं कल तुम्हें यह खयाल आना शुरू हो जाएगा, जो झील में देखा है, वह सच नहीं हो सकता। सच की खबर हो सकती है, सच की दूर की ध्वनि हो सकती है-प्रतिध्वनि हो सकती है, प्रतिबिंब हो सकता है लेकिन जो झील में देखा है, वह सच नहीं हो सकता। शब्द में जिसे कहा गया है, वह सत्य नहीं हो सकता। लेकिन शब्द में जिसे कहा गया है, वह सत्य का बहुत दूर का रिश्तेदार हो सकता है। __ मुल्ला नसरुद्दीन के जीवन में ऐसा उल्लेख है कि एक मित्र ने दूर गांव से एक मुर्गी भेजी। मुल्ला ने शोरबा बनाया। जो मुर्गी को लेकर आया था उसे भी निमंत्रित किया। कुछ दिनों बाद एक दूसरा आदमी आया। मुल्ला ने पूछा, कहां से आए? उसने कहा, मैं भी उसी गांव से आता हूं, और जिसने मुर्गी भेजी थी उसका रिश्तेदार हूं। अब रिश्तेदार का रिश्तेदार भी आया था तो उसको भी ठहराया। उसके लिए भी शोरबा बनवाया। लेकिन कुछ दिन बाद एक तीसरा आदमी आ गया। कहां से आ रहे हो? उसने कहा, जिसने मुर्गी भेजी थी, उसके रिश्तेदार का रिश्तेदार हूं।
ऐसे तो संख्या बढ़ती चली गई। मुल्ला तो परेशान हो गया। यह तो मेहमानों का सिलसिला लग गया। मुर्गी क्या आई, ये तो लोग चले ही आते हैं। यह तो पूरा गांव आने लगा। आखिर एक आदमी आया, उससे पूछा कि भाई आप कौन हैं? उसने कहा, जिसने मुर्गी भेजी थी, उसके रिश्तेदार के रिश्तेदार के रिश्तेदार का मित्र हूं।
मुल्ला ने शोरबा बनवाया। उस मित्र ने चखा, लेकिन वह बोला, यह शोरबा! यह तो सिर्फ गरम पानी मालूम होता है। मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा, यह वह जो मुर्गी आई थी, उसके शोरबे के शोरबे के शोरबे का मित्र है।
दूर होती जाती हैं चीजें। मैंने तुम्हें झील में दिखाया। तुम ऐसा भी कर सकते हो—कर सकते हो नहीं, करोगे ही-तुम झील के सामने एक दर्पण करके दर्पण में देखोगे। क्योंकि जब मैं तुमसे कहता हूं, तुम मुझे थोड़े ही सुनोगे, तुम्हारा मन उसकी व्याख्या करेगा।
जब मैंने कहा तभी चांद दूर हो गया। मैं जब देखता हूं, तब चांद है; जब मैं तुमसे कहता हूं तब झील में प्रतिबिंब है। जब तुम सुनते हो और सोचते हो, तब तुमने झील को भी दर्पण में देखा। फिर दर्पण को भी दर्पण में देखते चले जाओगे। ऐसे सत्य से शब्द दूर होता चला जाता है। . इसलिए बहुत बार जिन्होंने जाना है वे चुप रह गये। लेकिन चुप रहने से भी कुछ नहीं होता। जब तुम कह-कहकर नहीं सुनते हो, जगाए-जगाए नहीं जगते हो, तो चुप बैठने को तुम कैसे सुनोगे? जब शब्द चूक जाता है, तो मौन भी चूक जाएगा। जब शब्द तक चूक जाता है, तो मौन तो निश्चित ही चूक जाएगा। फिर भी जो कहा जा सकता है वह प्रतिध्वनि है, इसे याद रखना। उस प्रतिध्वनि के सहारे मूल की
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