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जागरण का तेल + प्रेम की बाती = परमात्मा का प्रकाश
में समा सकोगे। न ही तुम इसके सिद्धांत बना सकोगे। यह सुगंध अपार्थिव है। यह तो केवल उन्हीं को मिलती है, जो बुद्धों की आंखों में झांकने में समर्थ हो जाते हैं। यह तो केवल उन्हीं को मिलती है, जो बुद्धों के हृदयों में डूबने में समर्थ हो जाते हैं। यह तो केवल उन्हीं को मिलती है, जो मिटने को राजी हैं, जो खोने को राजी हैं। इस सुगंध को पाना बड़ा सौदा है। केवल जुआरी ही इसको पा पाते हैं।
होता है राजे-इश्को-मुहब्बत इन्हीं से फाश
आंखें जुबां नहीं हैं मगर बेजुबां नहीं बुद्ध की आंखों में जो झांकेगा, तो बुद्ध की आंखें जबान तो नहीं हैं कि बोल दें, लेकिन वे बेजुबां भी नहीं हैं। बोलती हैं। जो बुद्ध की आंखों के दीये को समझेगा, जो बुद्ध की आंखों के दीये के पास अपने बुझे दीयों को ले आएगा, जो बुद्ध की शून्यता में अपनी शून्यता को मिला देगा, जो बुद्ध के साथ होने को राजी होगा-अज्ञात की यात्रा पर जाने को केवल उसी के अंतरपट उस गंध से भर जाएंगे, केवल वही उस गंध का मालिक हो पाएगा। ___ 'वे जो शीलवान, अप्रमाद में विहार करने वाले सम्यक ज्ञान द्वारा विमुक्त हो गए हैं, उनकी राह में मार नहीं आता है।'
और जिसने भी शील को पा लिया, अप्रमाद को पा लिया, सम्यक ज्ञान को पा लिया-एक ही बातें हैं—उसकी राह में फिर वासना का देवता मार नहीं आता है। जो जाग गया, उसे फिर मार के देवता से मुलाकात नहीं होती। उसकी तो फिर परमात्मा से ही मुलाकात होती है। जो सोया है, उसकी घड़ी-घड़ी मुलाकात वासना के देवता से ही होती है। ___ 'जैसे महापथ के किनारे फेंके गए कूड़े के ढेर पर कोई सुगंधयुक्त सुंदर कमल खिले, वैसे ही कूड़े के समान अंधे सामान्यजनों के बीच सम्यक संबुद्ध का श्रावक अपनी प्रज्ञा से शोभित होता है।'
बहुत बातें हैं इस सूत्र में। पहली तो बात यह है कि कमल क्रीचड़ से खिलता है, कूड़े-करकट के ढेर से निकलता है। कमल कीचड़ में छिपा है। कमल तो पैदा करना है, लेकिन कीचड़ के दुश्मन मत हो जाना। नहीं तो कमल कभी पैदा न हो पाएगा।
समझो। जिसे तुमने क्रोध कहा है, वही है कीचड़; और जिसे तुमने करुणा जानी है, वही है कमल। और जिसे तुमने कामवासना कहा है, वही है कीचड़; और जिसको तुमने ब्रह्मचर्य जाना है, वही है कमल। काम के कीचड़ से ही राम का कमल खिलता है, क्रोध के कीचड़ से ही करुणा के फूल खिलते हैं। __ जीवन एक कला है। और जीवन उन्हीं का है जो उस कला को सीख लें। भगोड़ों के लिए नहीं है जीवन, और न नासमझों के लिए है। तुम कहीं भूल में मत पड़ जाना। तुम्हारे तथाकथित साधु-संन्यासी तुम्हें जो समझाते हैं, जल्दी मत मान लेना। क्योंकि
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