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________________ एस धम्मो सनंतनो सूली पर लटका दिया। अब और क्या चाहते हो! जाहिर है बात कि हम कोई ऐसी बस्ती के रहने वाले हैं जहां मछलियों की दुर्गंध हमें सुगंध मालूम होने लगी है, जहां हम जीसस को सूली पर लटका देते हैं, जहां हम सुकरात को जहर पिला देते हैं, जहां बुद्धों को हम पत्थर मारते हैं, महावीरों का अपमान करते हैं। हमें उनकी सुगंध सुगंध नहीं मालूम पड़ती है। हम भयभीत हो जाते हैं। उनका होना हमें डगमगा देता है। उनके होने में बगावत मालूम पड़ती है। उनकी श्वास-श्वास में विद्रोह के स्वर मालूम होते हैं। लेकिन देवताओं को उनकी गंध आती है। महावीर के जीवन में बड़ा प्यारा उल्लेख है। कथा ही होगी। लेकिन कथा भी बड़ी बहुमूल्य है और सार्थक है। और कभी-कभी कथाओं के सत्य जीवन के सत्यों से भी बड़े सत्य होते हैं। कहते हैं कि महावीर ने जब पहली दफा अपनी उदघोषणा की, अपने सत्य की, तो देवताओं के सिवाय कोई भी सुनने न आया। आते भी कैसे कोई और? उदघोषणा इतनी ऊंची थी! उसकी गंध ऐसी थी कि केवल देवता ही पकड़ पाए होंगे। अगर कहीं कोई देवता हैं तो निश्चित ही वही सुनने आए होंगे। फिर देवताओं ने महावीर को समझाया-बुझाया कि आप कुछ इस ढंग से कहें कि मनुष्य भी समझ सके। आप कुछ मनुष्य की भाषा में कहें। मतलब यही कि मनुष्य की टोकरी पर थोड़ा पानी छिड़कें, मनुष्य की टोकरी उसके पास रख दें, तो ही शायद वह पहचान पाए। __ कोई भी नहीं जानता कि महावीर की पहली उदघोषणा में, पहले संबोधन में महावीर ने क्या कहा था। वही शुद्धतम धर्म रहा होगा। लेकिन उसके आधार पर तो जैन धर्म नहीं बना। जैन धर्म तो बना तब, जब महावीर कुछ ऐसा बोले जो आदमी की समझ में आ जाए। वह महावीर का अंतरतम नहीं हो सकता। बुद्ध तो चुप ही रह गए जब उन्हें ज्ञान हुआ। उन्होंने कहा, बोलना फिजूल है, कौन समझेगा? यह गंध बांटनी व्यर्थ है। यहां कोई गंध के पारखी ही नहीं हैं। हम बांटेंगे सोना, लोग समझेंगे पीतल; हम देंगे हीरे, लोग समझेंगे कंकड़-पत्थर। फेंक आएंगे। बुद्ध तो सात दिन चुप रह गए। फिर कथा कहती है कि स्वर्ग के देवता उतरे, खुद ब्रह्मा उतरे, बुद्ध के चरणों में सिर रखा और कहा कि ऐसी अनूठी घटना कभी-कभार घटती है सदियों में, आप कहें। कोई समझे या न समझे, आप कहें। शायद कोई समझ ही ले। शायद कोई थोड़ा ही समझे। एक किरण भी किसी की समझ में आ जाए तो भी बहुत है। क्योंकि किरण के सहारे कोई सूरज तक जा सकता है। बुद्ध कहते हैं, 'तगर या चंदन की यह जो गंध है, अल्पमात्र है। और यह जो शीलवंतों की सुगंध है, वह उत्तम देवलोकों तक फैल जाती है।' इस सुगंध को शब्द देने कठिन हैं। यह सुगंध कोई पार्थिव घटना नहीं है। तुम इसे तौल न सकोगे। न ही तुम इसे गठरियों में बांध सकोगे। न ही तुम इसे शास्त्रों 214
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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