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________________ जागरण का तेल + प्रेम की बाती = परमात्मा का प्रकाश सोचता हूं यह तेरी राहगुजर है कि नहीं सोचो मत। जिसने सोचा उसने गंवाया। क्योंकि जब तुम सोचने लगते हो तब तुम मस्तिष्क में आ जाते हो। प्रेम करो, भाव से भरो। रो लेना भी बेहतर है सोचने से, नाच लेना बेहतर है सोचने से, आंसू टपका लेना बेहतर है सोचने से। जो भी हृदय से उठे, वह बेहतर है, वह श्रेष्ठ है। और जैसे-जैसे तुम्हारा थोड़ा संबंध बनेगा, तुम निश्चित ही जान लोगे कि उसी राह से परमात्मा आता है। ज्ञान की राह से नहीं, निर्दोष भाव की राह से आता है। 'तगर और चंदन की जो यह गंध फैलती है वह अल्पमात्र है। और यह जो शीलवंतों की सुगंध है, वह उत्तम गंध देवलोकों में भी फैल जाती है, देवताओं में भी फैल जाती है।' __ इसे थोड़ा समझें। तगर, चंदन की जो गंध है अल्पमात्र है, क्षणजीवी है। हवा का एक झोंका उसे उड़ा ले जाएगा। जल्दी ही खो जाएगी इस विराट में, फिर कहीं खोजे न मिलेगी। एक सपना हो जाएगी, एक अफवाह मालूम पड़ेगी। पता नहीं थी भी या नहीं थी। लेकिन शीलवंतों की जो सुगंध है, वह उत्तम गंध देवताओं में भी फैल जाती है। ___मैंने सुना है, एक स्त्री मछलियां बेचकर अपने घर वापस लौटती थी। नगर के बाहर निकलती थी कि उसकी एक पुरानी सहेली मिल गई, जो एक मालिन थी। उसने कहा, आज रात मेरे घर रुक जा, बहुत दिन से साथ भी नहीं हुआ, बहुत बातें भी करने को हैं। वह रुक गई। मालिन ने यह सोचकर कि पुरानी सखी है, ऐसी जगह उसका बिस्तर लगाया जहां बाहर से बेला की सुगंध भरपूर आती थी। लेकिन मछली बेचने वाली औरत करवटें बदलने लगी। बेला की सुगंध की आदत नहीं। आधी रात हो गई, तो मालिन ने पूछा, बहन तू सो नहीं पाती, कुछ अड़चन है? उसने कहा, कुछ और अड़चन नहीं, मेरी टोकरी मुझे वापस दे दो। और थोड़ा पानी उस पर छिड़क दो, क्योंकि मछलियों की गंध के बिना मैं सो न सकूँगी। बेला की सुगंध मुझे बड़ी तकलीफ दे रही है। बड़ी तेज है। ___ मालिन को तो भरोसा न आया। मछलियों की गंध! गंध कहना ही ठीक नहीं उसे, दुर्गंध है। लेकिन उसने पानी छिड़का उसकी टोकरी पर, कपड़े के टुकड़े पर-जिन पर मछलियां बांधकर वह बेच आई थी। उसने उसे अपने सिर के पास रख लिया, जल्दी ही उसे घुर्राटे आने लगे, वह गहरी नींद में खो गई। ___ तल हैं बहुत। बुद्ध कहते हैं, देवताओं को भी; पृथ्वी पर रहने वालों को ही नहीं स्वर्ग में रहने वालों को भी शील की गंध आती है। शायद पृथ्वी पर रहने वालों की तो वैसी ही हालत हो जाए जैसी मछली बेचने वाली औरत की हो गई थी। बुद्ध को लोगों ने पत्थर मारे। उन्हें दुर्गंध आई होगी, सुगंध न आई होगी। महावीर को लोगों ने सताया। उन्हें सुगंध न आई होगी, अन्यथा पूजते। जीसस को 213
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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