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________________ एस धम्मो सनंतनो बच्चे सुंदर होते हैं, सभी छोटे बच्चों में जीवन का आह्लाद होता है, एक सरलता होती है-गणितशून्य, हिसाब से मुक्त, एक प्रवाह होता है। निकल के कूचे से तेरे बहुत खराब हुए कहीं न चैन मिला फिर तेरी गली की तरह अगर तुम अपने बचपन को याद करोगे, तो तुम्हें ये वचन समझ में आ जाएंगे। ये वचन तो कहे गए हैं अदम के लिए, कि अदम को जब स्वर्ग के बगीचे से निकाल दिया गया...निकाला क्यों गया? निकाला इसलिए गया कि उसने बचपन खो दिया, उसने सरलता खो दी, निर्दोषता खो दी। उसने ज्ञान के वृक्ष का फल चख लिया, वह समझदार हो गया। अब ये बड़ी मजे की कहानी है ईसाइयों की। इससे अनूठी कहानी दुनिया के इतिहास में दूसरी नहीं। अदम को इसलिए निकाला गया कि वह ज्ञानी हो गया। थोड़ा सोचो। हम तो सोचते हैं, ज्ञानियों को वापस ले लिया जाएगा। अदम जब तक सरल था, तब तक तो स्वर्ग के बगीचे में रहा, और जब समझदार हो गया-समझदार यानी जब वह चालाक हो गया, जब उसने ज्ञान के वृक्ष का फल चख लिया-उस क्षण परमात्मा ने उसे बाहर कर दिया। निकल के कूचे से तेरे बहुत खराब हुए ___ कहीं न चैन मिला फिर तेरी गली की तरह और आदमी, ईसाइयत कहती है, तब से बेचैन है, उसी की गली को फिर खोज रहा है। लेकिन यह खोज तभी पूरी हो सकती है जब ज्ञान को तुम वमन कर दो, जब तुम अपने पांडित्य को फेंक दो कूड़े-करकट के ढेर पर, जब तुम फिर से सरल हो जाओ, जब तुम फिर बालक की भांति हो जाओ। संतत्व में पुनः बच्चे का शील आ जाता है, बच्चे की सुगंध आ जाती है। 'चंदन या तगर, कमल या जूही, इन सभी की सुगंधों से शील की सुगंध सर्वोत्तम है।' यह शील की सुगंध तुम्हारे मस्तिष्क का हिसाब-किताब नहीं, तुम्हारे हृदय में जला हुआ दीया है, तुम्हारे हृदय में जली ज्योति है। दिल से मिलती तो है इक राह कहीं से आकर सोचता हूं यह तेरी राहगुजर है कि नहीं मत सोचो। दिल से जो राह मिलती है वही परमात्मा की राह है। सोचा तो भटकोगे। उस राह पर थोड़ा चलकर देखो। उस राह पर चलते ही तुम्हें लगेगा, मंदिर के शिखर दिखाई पड़ने लगे, मंदिर की घंटियों का स्वर सुनाई पड़ने लगा, मंदिर में जलती धूप की सुगंध तुम्हारे नासापुटों को भरने लगी। - दिल से मिलती तो है इक राह कहीं से आकर अज्ञात की राह तुम्हारे सिर से नहीं मिलती, तुम्हारे दिल से मिलती है। 212
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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