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________________ एस धम्मो सनंतनो वे कहते हैं कि हटाओ क्रोध को; वे कहते हैं, हटाओ काम को। मैं तुमसे कहता हूं, बदलो, हटाओ मत। रूपांतरित करो, ट्रांसफार्म करो। क्रोध ऊर्जा है, उसे काट दोगे तो करुणा पैदा न होगी। तुम सिर्फ शक्तिहीन, नपुंसक हो जाओगे। काम ऊर्जा है। उसे अगर काट दोगे तो तुम निर्वीर्य हो जाओगे। बदलो, रूपांतरित करो, उसमें महाधन छिपा है। तुम कहीं फेंक मत देना। कीचड़ समझकर फेंक मत देना, कमल भी छिपा है। हालांकि कीचड़ को ही कमल मत समझ लेना। दुनिया में दो तरह के लोग हैं। बड़ी खतरनाक दुनिया है। एक तो वे लोग हैं, जो कहते हैं, कीचड़ को हटाओ, क्योंकि कहां कीचड़ को ढो रहे हो? काटो कामवासना को, तोड़ो क्रोध को, जला दो इंद्रियों को। एक तो ये लोग हैं। इन्होंने काफी हानि की संसार की। इन्होंने मनुष्य को गरिमा से शून्य कर दिया। इन्होंने मनुष्य का सारा गौरव नष्ट कर दिया, दीन-हीन कर दिया मनुष्य को। क्योंकि उसी कीचड़ में छिपे थे कमल। फिर दूसरी तरह के लोग भी हैं। अगर उनसे कहो, कीचड़ में कमल छिपा है, फेंको मत कीचड़ को, बदलो; तो वे कहते हैं, बिलकुल ठीक! फिर वे कीचड़ को ही सिंहासन पर विराजमान कर लेते हैं, फिर वे उसी की पूजा करते हैं। वे कहते हैं, तुम्हीं ने तो कहा था कि कीचड़ में कमल छिपा है। अब हम कीचड़ की पूजा कर रहे हैं। ये दोनों ही खतरनाक लोग हैं। कीचड़ में कमल छिपा है। न तो कीचड़ को फेंकना है, न कीचड़ की पूजा करनी है। कीचड़ से कमल को निकालना है। कीचड़ से कमल को बाहर लाना है। जो छिपा है, उसे प्रगट करना है। इन दो अतियों से बचना। ये दोनों अतियां एक जैसी हैं। कुआं नहीं तो खाई। कहीं बीच में खड़े होने के लिए जगह खोजनी है। कोई संतुलन चाहिए। ___ 'जैसे महापथ के किनारे फेंके गए कूड़े के ढेर पर कोई सुगंधित सुंदर कमल खिले।' तो पहली तो बात यह है कि कमल खिलता ही कीचड़ में है। इसका बड़ा गहरा अर्थ हुआ। इसका अर्थ हुआ कि कीचड़ सिर्फ कीचड़ ही नहीं है, कमल की संभावना भी है। तो गहरी आंख से देखना, तो तुम कीचड़ में छिपा हुआ कमल पाओगे। कीचड़ सिर्फ वर्तमान ही नहीं है, भविष्य भी है। गौर से देखना, तुम भविष्य के कमल को झांकते हुए पाओगे। छिपा है। इसलिए जिनके पास पैनी आंखें हैं, उन्हीं को दिखाई पड़ेगा। ___ कीचड़ की पूजा भी नहीं करना, कीचड़ का उपयोग करना। कीचड़ को मालिक मत बन जाने देना, कीचड़ को सेवक ही रहने देना। मालिक तुम्हीं रहना, तो ही कमल निकल पाएगा। क्योंकि तुम्हारी मालकियत रहे तो ही कमल को तुम कीचड़ के बाहर खींच पाओगे। तुम अगर ऊर्ध्वगमन पर जाते हो, अगर तुम ऊपर की तरफ यात्रा 216
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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