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________________ जागरण का तेल + प्रेम की बाती = परमात्मा का प्रकाश उस दिन तो मैंने यही समझा कि रात का खाना इतना पापपूर्ण है इसीलिए उलटी हो गई। लेकिन उनको तो किसी को भी न हुई। संस्कार की बात थी। कोई रात के खाने से संबंध न था। कभी खाया न था, और रात खाना पाप है, वह धारणा; तो किसी तरह खा तो लिया, लेकिन वह सब शरीर ने फेंक दिया, मन ने बाहर फेंक दिया। शील से इन घटनाओं का कोई संबंध नहीं है, मन की धारणाओं से संबंध है। तुम जो मानकर चलते हो, जो तुम्हारे विचार में बैठ गया है, उसके अनुकूल चलना आचरण है, उसके प्रतिकूल चलना दुराचरण है। शील क्या है? शील है, जब तुम्हारे मन से सब विचार समाप्त हो जाते हैं और निर्विचार दशा उपलब्ध होती है, शून्यभाव बनता है, ध्यान लगता है, उस ध्यान की दशा में तुम्हें जो ठीक मालूम होता है, वही करना शील है। और वैसा शील सारे जगत में एक सा होगा। उसमें कोई संस्कार के भेद नहीं होंगे, समाज के भेद नहीं होंगे। __चरित्र हिंदू का अलग होगा, मुसलमान का अलग होगा, ईसाई का अलग होगा, जैन का अलग होगा, सिक्ख का अलग होगा। शील सभी का एक होगा। शील वहां से आता है जहां न हिंदू जाता, न मुसलमान जाता, न ईसाई जाता। तुम्हारी गहनतम गहराई से, अछूती कुंवारी गहराई से, जहां किसी ने कभी कोई स्पर्श नहीं किया, जहां तुम अभी भी परमात्मा हो, वहां से शील आता है। ' जैसे अगर तुम थोड़ी सी जमीन खोदो तो ऊपर-ऊपर जो पानी मिलेगा वह तो पास की सड़कों से बहती हुई नालियों का पानी होगा, जो जमीन ने सोख लिया है-चरित्र। चरित्र होगा वह। फिर तुम गहरा कुआं खोदो, इतना गहरा कुआं खोदो जहां तक नालियों का पानी जा ही नहीं सकता, तब तुम्हें जलस्रोत मिलेंगे, वे सागर के हैं। तब तुम्हें शुद्ध जल मिलेगा। __ अपने भीतर इतनी खुदाई करनी है कि विचार समाप्त हो जाएं, निर्विचार का तल मिल जाए। वहां से तुम्हारे जीवन को जो ज्योति मिलेगी वह शील की है। चरित्र में कोई बड़ी सुगंध नहीं होती। चरित्र तो प्लास्टिक के फूल हैं, चिपका लिए ऊपर से, सज-धज गए, श्रृंगार कर लिया। दूसरों को दिखाने के लिए अच्छे, लेकिन परमात्मा के सामने काम न पड़ेंगे। शील ऐसे फूल हैं जो तुमने चिपकाए नहीं, तुम्हारे भीतर लगे, उगे, उमगे, तुम्हारे भीतर से आए। जिनकी जड़ें तुम्हारे भीतर छिपी हैं। उन्हीं फूलों को तुम परमात्मा के सामने ले जाने में समर्थ हो सकोगे। जो समाज ने दिया है, वह मौत छीन लेगी। क्योंकि जो समाज ने दिया है, वह जन्म के बाद दिया है। उसे तुम मौत के आगे न ले जा सकोगे। जन्म और मौत के बीच ही उसकी संभावना है। __ लेकिन अगर शील का जन्म हो जाए, तो उसका अर्थ है, तुमने वहां पाया अब जो जन्म के पहले था, जब तुम पैदा भी न हुए थे। उस शुद्ध चैतन्य से आ रहा है। 209
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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